धनतेरस के दिन आयुर्वेद के जनक ऋषि धन्वंतरी का प्राकट्य दिवस है। पुराणों के अनुसार देवता-दानवों द्वारा समुद्र मन्थन करने पर 14 रत्नों में से अंतिम रत्न के रूप में अमृत कलश लिये हुए भगवान धन्वन्तरी जी का प्रादुर्भाव हुआ था। उन्हीं की जयंती के रूप में धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। धन्वन्तरी जी वैद्य-विद्या-आयुर्वेदके देवता माने जाते है। इस दिन संचित की गई जड़ी-बूटियाँ अमृत के समान होती है।
आयुर्वेद में स्वस्थ शरीर को ही धन माना गया है।
पहला सुख निरोगी काया।दूजा सुख घर में माया।
इसीलिये ऋषि-मुनियों ने सबसे पहले धन्वन्तरी पूजन कर स्वस्थ रहने की कामना के बाद ही लक्ष्मी पूजन करने कहा है।
पंडित मनोज शुक्ला के अनुसार धनतेरस के पहले दिन तक घर को लीप पोत कर स्वच्छ और पवित्र करके रंगोली तोरण आदि से सजावट किया जाता है। तथा शाम के समय मन्दिर, गोशाला, नदी तालाब व कुँआ के किनारे तथा बाग-बगीचों में भी दीपक जलाये जाते हैं। घर के अंदर पूजा स्थल पर धनाधिपति भगवान कुबेर व गौरी-गणेश की पूजा करके अन्नपूर्णा स्तोत्र, कनकधारा स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
इसकी करें खरीदी
आज के दिन सोना, चांदी, स्टील के बर्तन, कांसे का समान लेने का नियम है। इससे घर में ला कर विधिवत पूजा कर भगवान में अर्पित करना चाहिए। मीठा भोग लगाना चाहिए। आप चाहें तो तांबे, कांसे और चांदी की भगवान की मूर्ति भी ले सकते हैं।