साइंस कॉलेज में चल रहे राज्योत्सव और आदिवासी महोत्सव में अनोखी कला का मिश्रण देखने को मिल रहा है। पारंपरिक वेशभूषा में तैयार कलाकार एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दे रहे हैं। उसमें गैर-घूमरा नृत्य आदिवासी भील-मीणों द्वारा किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य बेहद खास रहा। नृत्य में महिला और पुरुष दोनों ने हिस्सा लिया और समा बांधी।
नृत्य में स्त्री एवं पुरुष दोनों भाग लेते हैं इनके घेरे अलग अलग होते है। घेरे के अंदर घेरा इस नृत्य की खास विशेषता है। इसके भीतरी घेरे में महिलाएं होती हैं जबकि बाहर के घेरे में पुरुष नर्तक रहते हैं। भीतरी घेरे में जो महिलांए नृत्य करती हैं वह ”घूमरा“कहलाता है जबकि उसके बाहर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य “गैर“ नाम से जाना जाता है। दोनों घेरे के नर्तक जब वाद्य की लय तेज हो जाती है तो अपना पाला बदलते हुए नृत्य करते हुए एक दूसरे के घेरे में पहुंच जाते हैं। ढोल, मादल तथा झालर इस नृत्य के प्रमुख वाद्य हैं।