
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि दक्षिण चीन सागर में समुद्री कानूनों पर संयुक्त राष्ट्र की संधि (यूएनसीएलओएस) पर आधारित आचार संहिता अमल में लाई जाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का अनुपालन करते हुए सभी देशों की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता को सुदृढ़ करने के लिए प्रतिबद्धता और साझा प्रयास सुनिश्चित किए जाएं। प्रधानमंत्री मोदी ने यहां 18वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने चीन की विस्तारवादी नीतियों को खारिज कर दिया और उसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रति जवाबदेह बनने की नसीहत दी।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य कठिन परिस्तिथियों और अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है। आतंकवाद, उग्रवाद, और भू-राजनीतिक टकराव सभी के लिए बड़ी चुनौतियां हैं। इनका सामना करने के लिए बहुपक्षवाद और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था अहम हैं। अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पूरी तरह पालन होना आवश्यक है। सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को सुदृढ़ करने के लिए सबकी प्रतिबद्धता और साझा प्रयास भी आवश्यक हैं। उन्होंने संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता को लेकर सैन्य टकराव से बचने के इरादे का इजहार करते हुए कहा, “आज का युग युद्ध का नहीं है। संवाद और कूटनीति ही समाधान का रास्ता है।”
प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि भारत हिन्द प्रशांत क्षेत्र को लेकर आसियान के दृष्टिकोण का पूर्ण समर्थन करता है। हिन्द प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत और आसियान के विज़न में सामंजस्य है। और इसीलिए पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन हिन्द प्रशांत महासागर पहल को क्रियान्वित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। क्वॉड के विज़न का केंद्रबिंदु आसियान है। क्वॉड का सकारात्मक एजेंडा आसियान की विभिन्न कार्यप्रणालियों के लिए पूरक का काम करता है।