कांग्रेस के वरिष्ठ नेता में शुमार और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रहे जितिन प्रसाद बुधवार को भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में प्रसाद को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने पार्टी की सदस्यता दिलाई। गोयल ने कहा कि प्रसाद के पार्टी में शामिल होने से पार्टी को बल मिलेगा.
भाजपा में शामिल होने के बाद जितिन प्रसाद ने कहा कि ‘आज कोई वास्तव में संस्था के तौर पर काम करने वाला दल है तो वह भाजपा है। दूसरे दल, व्यक्ति विशेष और क्षेत्रीयता तक सीमित रह गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए भारत का जो निर्माण कर रहे हैं, उसमें मुझे भी छोटा सा योगदान करने का मौका मिलेगा।’ प्रसाद ने कहा कि अगर आप किसी पार्टी में रहकर अपने लोगों के काम नहीं आ सकते हैं तो वहां रहने का क्या फायदा। मुझे उम्मीद है कि भाजपा समाजसेवा का माध्यम बना रहेगा। भाजपा में शामिल होने से पहले प्रसाद ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की।
गौर हो कि जितिन प्रसाद उन 23 नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने पिछले साल कांग्रेस में सक्रिय नेतृत्व और संगठनात्मक चुनाव की मांग को लेकर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी। पत्र से जुड़े विवाद को लेकर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले की कांग्रेस कमेटी ने प्रस्ताव पारित कर उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी, जिसे लेकर विवाद भी हुआ था। जितिन प्रसाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे जितेंद्र प्रसाद के पुत्र हैं, जिन्होंने पार्टी में कई अहम पदों पर अपनी सेवाएं दी थीं। जितिन ने 2004 में शाहजहांपुर से पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता था और उन्हें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में इस्पात राज्यमंत्री बनाया गया था। इसके बाद उन्होंने 2009 में धौरहरा सीट से जीत दर्ज की। इसके बाद उन्होंने संप्रग सरकार में पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस, सड़क परिवहन और राजमार्ग और मानव, संसाधन विकास राज्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने वाले जितिन प्रसाद को 2014 के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में तिलहर सीट से हाथ आजमाया लेकिन इसमें भी उन्हें निराशा ही मिली। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी धौरहरा से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
यूपी में अगर आबादी के हिसाब से देखा जाए तो ब्राह्मण वोट महज 10/11 फीसदी है, लेकिन राजनीतिक रूप से रसूख रखने की वजह से उनके वोट की अहमियत काफी है। नब्बे के दौर से पहले या यूं कहे कि मंडल दौर से पहले तो यूपी की राजनीति में ब्राह्मण राजनीति की धुरी हुआ करती थी। उस दौर में कुछ ब्राह्मण मुख्यमंत्री भी हुए। उत्तर प्रदेश की राजनीति को देखे तो मोदी काल के शुरू होने के बाद ब्राह्मण वोट बैंक ने खुलकर और पूरी तरह से भाजपा का साथ दिया। भाजपा की कोशिश है कि आने वाले विधानसभा चुनाव यानी 2022 और 2024 में यूपी से बीजेपी को वही सफलता मिले, तो 2014 में और उसके बाद मिली थी।