झारखंड के चतरा के इटखोरी स्थित ऐतिहासिक मां भद्रकाली मंदिर परिसर में मूर्ति चोरी की घटना ने यहां पशु बकरे की बलि देने की परंपरा ही बदल दी। पहले इस मंदिर में बकरे की बलि दी जाती थी। इस घटना के बाद यहां शाकाहारी बलि देने का चलन शुरू हो गया।
महाने एवं बक्सा नदी के संगम पर करीब 1200 वर्ष पहले नौवीं-दसवीं शताब्दी में बसी इस नगरी में साठ वर्ष पहले तक मन्न्त पूरी होने की खुशी में श्रद्धालु बकरे की बलि देते थे। तब से मंदिर में पशु बलि अर्पित करने की परंपरा चल रही थीा इस बीच 1968 में इस मंदिर से मूर्ति चोरी हो गई। चोरी के बाद मां भद्रकाली की मूर्ति कोलकाता से बरामद होने के बाद जब यहां लाई गई, तो स्थानीय लोगों में माता के प्रति आस्था और गहरी हो गई। लोगों को लगा कि यहां बलि के कारण ही माता की मूर्ति चोरी हुई।
शायद अब माता नहीं चाहतीं कि यहां किसी की जान ली जाए। इसके बाद लोगों ने इस ऐतिहासिक मंदिर परिसर को विकसित करने के साथ मंदिर की धार्मिक परंपराओं में बदलाव पर भी कई निर्णय लिए गए। अब से मंदिर परिसर में बकरे की बलि अर्पित नहीं की जाएगी। इसको मंदिर के पुजारियों के साथ श्रद्धालुओं ने भी बिना किसी विरोध के स्वीकार कर लिया। इसके बदले मंदिर में शाकाहार बलि अर्पित करने की नई धार्मिक परंपरा का शुभारंभ हुआ। अब नवरात्र पर भक्त माता को कुष्मांड (भतुआ), ईख और फलों की बलि अर्पित करते हैं। मां भद्रकाली मंदिर परिसर के किसी भी होटल के व्यंजन में प्याज और लहसुन तक का इस्तेमाल नहीं होता।