
पंछी कभी अपने बच्चों के भविष्य के लिए घोंसला बनाकर नहीं देते। वो तो बस उन्हें उड़ने की कला सिखाते हैं। जो एक बार उड़ना सीख जाता है वो अपने लिए दाना और घोसला बनाने का भी इंतजाम कर लेता है। कहने का आशय ये है कि हमें आज की पीढ़ी को भी उनमुक्त और खुला छोड़ देने की जरूरत है। इससे उन्हें खुद को परखने और आजमाने का मौका मिलता है।

हमेशा हम बच्चों पर अंकुश लगाते हैं, उन्हें अपने पसंद के अनुरूप आगे बढ़ते देखना चाहते हैं ये संभव नहीं है। उन्हें उंचाई में पहुंचाना है तो इसके लिए आपको उन्हें खुला छोड़ना होगा उन्हें उड़ने की परिभाषा सिखानी होगी।