ये बात सच है कि हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही होता है। इस लिए हमें सकारात्मक सोच रखना चाहिए। सुबह उठते ही पहली बात, कल्पना करें कि हम बहुत प्रसन्न हैं। बिस्तर से प्रसन्न-चित्त उठें। प्रफुल्लित, आशा-पूर्ण– जैसे कुछ समग्र, अनंत बहुमूल्य होने जा रहा हो।
अपने बिस्तर से प्यारी आशा के साथ , कुछ ऐसे भाव से कि आज का यह दिन सामान्य दिन नहीं होगा कि आज कुछ अनूठा, कुछ प्यारा तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है; वह तुम्हारे करीब है। इसे दिन-भर बार-बार स्मरण रखने की कोशिश करें। सात दिनों के भीतर तुम पाओगे कि तुम्हारा पूरा वर्तुल, पूरा ढंग, पूरी तरंगें बदल गई हैं।
बस एक बात पर निरंतर ध्यान रखना है कि नींद के आने तक तुम्हें कल्पना करते जाना है ताकि कल्पना नींद में प्रवेश कर जाए, वे दोनों एक दूसरे में घुलमिल जाएं। यही से सकारात्मक चीज़े हममे मिलने लगेगी