नवरात्र का तीसरा दिन- माँ चंद्रघण्टा का स्वरूप, पूजा विधि, मन्त्र और कथा




धर्मदर्शन,पूनम ऋतु सेन। आज शारदीय नवरात्र का तीसरा दिन है हिंदू धर्म में नवरात्रि का पर्व आस्था, भक्ति व उल्लास का पर्व है।  7 अक्टूबर से प्रारंभ हुए नवरात्र का आज तीसरा दिन माता चंद्रघंटा को समर्पित है।


माँ चंद्रघण्टा

ऐसी मान्यता है कि माता का यह रूप राक्षसों का वध करने के लिए है और माँ अपने आराधकों के दुखों को दूर कर देती हैं, इसीलिए उनके हाथों में तलवार त्रिशूल गदा और धनुष होता है उनकी उत्पत्ति ही धर्म की रक्षा एवं संसार से अंधकार को मिटाने के लिए हुई है ऐसा कहा जाता है कि माता चंद्रघंटा की उपासना करने से साधक को आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्रदान करती है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की उपासना और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से भक्तों को संसार में यश कीर्ति और सम्मान मिलता है।

माता का स्वरूप वर्णन

मां चंद्रघंटा का मुख सरल व सौम्यता से भरा हुआ है, मां चंद्रघंटा एवं उनकी सवारी शेर दोनों का शरीर सोने की तरह चमकता है दसों हाथों में कमल एवं कमंडल के अलावा माता के हाथों में अस्त्र एवं शस्त्र भी है इस अर्धचंद्र के कारण माता को चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है माता का यह स्वरूप दुष्टों का नाश करने के लिए बना हुआ है इसलिए मां चंद्रघंटा को स्वर्ग की देवी भी कहते हैं।

नवरात्र के तीसरे दिन की पूजा विधि और भोग

नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा के लिए माता को लाल रंग के पुष्प अर्पित किए जाते हैं और फल में सेब चढ़ाए जाते हैं भोग चढ़ाते समय और आराधना करते समय मंदिर की घंटियां अवश्य बजानी चाहिए। क्योंकि मां चंद्रघंटा की पूजा में घंटो का विशेष स्थान है ऐसी मान्यता है कि घंटों की ध्वनि से माता प्रसन्न होकर भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं साथ ही माता को दूध एवं उससे बने खाद्य पदार्थों का भोग लगाना चाहिए और इसी का दान भी करना चाहिए। माता को मखाने की खीर अत्यंत प्रिय है अतः इसका भोग लगाना भी लाभदायी माना गया है।

माँ चंद्रघण्टा का बीज मंत्र

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते महां चंद्रघण्टेति विश्रुता ॥

मां चंद्रघंटा की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार जब व्यक्तियों का आतंक बढ़ने लगा तब माता दुर्गा ने चंद्रघंटा का अवतार लिया। उस समय असुरों का स्वामी महिषासुर था जिसका देवताओं के साथ भयंकर युद्ध चल रहा था महिषासुर इंद्र से उसका आसन छीनना चाहता था और उसकी प्रबल इच्छा स्वर्ग में राज करने की थी। महिषासुर की इस इच्छा को जानकर सभी देवता गण चिंतित हो उठे और इस समस्या के हल के लिए सभी देवता गण ब्रह्मा विष्णु और महेश के समक्ष उपाय जानने के लिए गए। देवताओं से यह बात सुनने के बाद त्रिदेव को क्रोध आया और इस क्रोध से त्रिदेव के मुख से एक शक्ति उत्पन्न हुई जो मां चंद्रघंटा का रूप धारण किए हुई थी तब भगवान विष्णु ने माता को अपना चक्र वह भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल प्रदान किया इसी प्रकार अन्य देवताओं ने भी माता के हाथ में अपने अपने अस्त्र-शस्त्र सौंप दिए और देवराज इंद्र ने माता को अपना घंटा सौंप दिया वही सूर्य ने अपनी तेज और तलवार सौंपा और सवारी के लिए सिंह प्रदान किया गया और यह पूर्ण रूप धारण कर मां चंद्रघंटा महिषासुर के समक्ष पहुंची माता का यह रूप देखकर महिषासुर को यह समझ आ गया कि उसका काल अब आ गया है और भयवश वह माता के ऊपर हमला करना शुरू किया तब देवताओं और असुरों के बीच चल रहे यूद्ध में माता ने महिषासुर का वध किया। इस तरह माता चंद्रघंटा ने देवताओं की रक्षा की।

मां चंद्रघंटा की आरती

नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा का ध्यान ।
मस्तक पर हे अर्ध चन्द्र, मंद मंद मुस्कान
दस हाथों में अस्त्र शस्त्र रखे खडग संग बांद
घंटे के शब्द से हरती दुष्ट के प्राण।
सिंह वाहिनी दुर्गा का चमके सवर्ण शरीर
करती विपदा शान्ति हरे भक्त की पीर ॥
मधुर वाणी को बोल कर सब को देती ज्ञान
जितने देवी देवता सभी करें सम्मान ॥
अपने शांत सवभाव से सबका करती ध्यान।
भव सागर में फसा हूं मैं, करो मेरा कल्याण ।
नवरात्रों की मां, कृपा कर दो मां।
जय माँ चंद्रघंटा, जय मां चंद्रघंटा।

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