मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा क्षेत्र के भवानी सिंह और उल्फत सिंह के बैलों की जोड़ी का दो दिनों के अंतराल में मौत हो गई। इसके बाद दोनों किसानों ने अपने बैलों का अंतिम संस्कार पूरे हिंदू धर्म के सनातनी विधि विधान से किया। किसान भवानी सिंह ने बताया कि दिवंगत होने वाले परिजनों की हस्तियों का विसर्जन यहां हरि की पौडी गंगा में होता है, इसलिए वह अपने बैलों की अस्तियों का विसर्जन करने भी उत्तराखण्ड राज्य की एक धार्मिक नगरी हरिद्वार के हरि की पौड़ी गए और विधि विधान से पूजा अर्चना की। एक ओर इस युग में पिता पुत्र में लड़ाई झगड़ा तथा इस प्रकार के आयोजन को लेकर कई विवाद सामने आते हैं, लेकिन जानवरों के प्रति इतना स्नेह और प्रेम इस युग में देखने को कम मिलता है।
भानपुरा क्षेत्र के भवानी सिंह और उल्फत सिंह के बैलों की जोड़ी मना और श्याम की 14 और 16 दिसंबर को मौत होने के बाद अपने बैलों का अंतिम संस्कार पूरे सनातनी हिंदू धर्म अनुसार विधि विधान से किया। दोनों किसानों ने दोनों बैलों को बचपन से पाला था। किसान भवानी सिंह ने बताया कि अपने तीर्थ पुरोहित पंडित उमेश पाठक के माध्यम से बैलों का श्राध और कर्मकांड भी किया। इसके बाद घर लौटकर त्रयोदशी संस्कार भी कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने निमंत्रण पत्र छपाए हैं और आसपास के गांव में न्योता भिजवाया है। तेरहवीं के आयोजन में लगभग 3000 परिचितों को बुलाया। जिले के भानपुरा तहसील के ग्राम पंचायत अंत्रालिया के गांव बाग का खेड़ा में 26 दिसंबर को 13वीं का प्रोग्राम रखा गया था। उनके द्वारा शोक पत्रिका, गंगा माता का गंगोज का आयोजन किया हैं।
किसान भवानी सिंह ने बताया कि जब हम बड़ी कठिनाई में थे। तब यह बैल की जोड़ी हमारे द्वारा खरीदी गई थी। 30 वर्षों तक इनसे खेती का कार्य किया और दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति करने लगे। इन बैल की जोड़ी की मदद से हमने 15 बीघा जमीन और दो ट्रैक्टर एक जेसीबी खरीदी। पहले हमारे पास कुल 35 बीघा जमीन थी और उत्पादन भी काम होता था। बैलों के आने के बाद अब 50 बीघा के करीब खेती की जमीन हो गई है। दोनों बैल मना एवं श्याम की मेहनत से हमने बहुत कुछ कमाया है। अब हमारा फर्ज है कि अपने पिता के समान दोनों बैलों का अंतिम संस्कार भी पिता की तरह ही किया जा सके, इसलिए यह आयोजन किया गया है।