
नई दिल्ली। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में क्रीमी लेयर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में देशभर के विभिन्न संगठनों ने 21 अगस्त को भारत बंद का आह्वान किया है। बहुजन समाज पार्टी समेत कई राजनीतिक दल इस बंद का समर्थन कर रहे हैं।
इस संदर्भ में कुछ प्रासंगिक प्रश्न उठते हैं: भारत में राष्ट्रव्यापी बंद के आह्वान के पीछे क्या कारण है? दलित संगठन सुप्रीम कोर्ट के किस विशेष फैसले का विरोध कर रहे हैं? इन संगठनों की क्या मांगें हैं? संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में लेटरल एंट्री का मुद्दा क्यों जांच के दायरे में है? बंद के दौरान कौन से प्रतिष्ठान चालू रहेंगे और कौन से बंद रहेंगे?
क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ?
सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर के बारे में अपने फैसले में कहा, “सभी एससी और एसटी समुदाय एक ही श्रेणी के नहीं हैं। कुछ समुदाय अधिक वंचित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, सीवर की सफाई और बुनाई में लगे लोग एससी श्रेणी के हैं, फिर भी इन समुदायों के लोग दूसरों की तुलना में अधिक हाशिए पर हैं। इन व्यक्तियों के उत्थान को बढ़ावा देने के लिए, राज्य सरकारें एससी-एसटी आरक्षण को वर्गीकृत कर सकती हैं और अलग कोटा स्थापित कर सकती हैं। यह कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 341 का उल्लंघन नहीं करती है।” सुप्रीम कोर्ट ने कोटा सिस्टम के भीतर कोटा तय करने के अपने फैसले के साथ ही राज्यों को जरूरी निर्देश भी जारी किए हैं। इसमें कहा गया है कि राज्य सरकारें मनमाने तरीके से यह फैसला नहीं ले सकतीं। इस संबंध में दो शर्तें भी लागू होंगी।
क्या हैं दो शर्ते
- एससी के भीतर किसी एक जाति को 100% कोटा नहीं दे सकतीं।
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एससी में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुनाया, जिनमें तर्क दिया गया था कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण का लाभ इन श्रेणियों के भीतर केवल सीमित संख्या में समुदायों तक ही पहुंचा है। नतीजतन, कई अन्य समुदाय पीछे छूट गए हैं। उन्हें मुख्यधारा में एकीकृत करने के लिए, एक उप-कोटा स्थापित किया जाना चाहिए। इस तर्क का खंडन 2004 के एक निर्णय द्वारा किया गया है, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों के भीतर वर्गीकरण अनुमेय है।
कौन-सी पार्टियां कर रही है भारत बंद का समर्थन
देशभर के दलित संगठनों ने 21 अगस्त को देशव्यापी बंद का ऐलान किया है। उन्हें बहुजन समाज पार्टी के प्रमुख, भीम आर्मी के चंद्रशेखर आज़ाद और भारतीय ट्राइबल पार्टी की मोहन लता रोत जैसे नेताओं का समर्थन मिल रहा है। इसके अलावा कांग्रेस पार्टी और अन्य राजनीतिक समूहों के कुछ नेता भी अपना समर्थन जता रहे हैं।
बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने एक्स पर लिखा
”हम सब जानते हैं कि बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के उप वर्गीकरण के फैसले का पुरजोर विरोध किया है। बहन जी के दिशानिर्देश बीएसपी के सभी छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं से अपील है कि बीएसपी के नीला झंडा और हाथी निशान के तहत 21 अगस्त 2024 को होने वाले भारत बंद में शामिल हों और जनता को खासकर दलित, शोषित, वंचित, अल्पसंख्यक और न्याय पसंद लोगों तक उप वर्गीकरण के बारे में जागरूक करें।” उन्होंने यह भी आग्रह किया कि सभी बीएसपी कार्यकर्ता बड़ी संख्या में अनुशासित और संवैधानिक तरीके से भारत बंद में भाग लें।
क्या मांगे हैं भारत बंद करने वालों की ?
भारत बंद का आह्वान करने वाले दलित संगठनों की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट कोटा के भीतर कोटा संबंधी अपने फैसले को या तो रद्द करे या उस पर पुनर्विचार करे।
अभी तक किसी भी राज्य सरकार ने भारत बंद के संबंध में आधिकारिक तौर पर दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं। पुलिस और प्रशासन पूरी तरह से अलर्ट पर है। विरोध प्रदर्शन के दौरान लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी व्यापक कदम उठा रहे हैं।
ये सेवाएं रहेंगी जारी
21 अगस्त को भारत में राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान अस्पताल और एम्बुलेंस जैसी आपातकालीन सेवाएँ चालू रहेंगी। अभी तक सरकार की ओर से बैंक और सरकारी प्रतिष्ठानों को बंद रखने के बारे में कोई निर्देश नहीं आया है। इसलिए अनुमान है कि बुधवार को बैंक और सरकारी कार्यालय खुले रहेंगे।