
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि उम्रकैद की सजा का समापन कैदी के जीवनकाल में होना चाहिए. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सजा का उद्देश्य केवल दंडित करना नहीं, बल्कि सुधार करना भी है. यह टिप्पणी जस्टिस गिरीश कठपालिया ने उस मामले में की, जिसमें एक कैदी ने 21 वर्षों की जेल की अवधि के बाद अपनी रिहाई की मांग की थी.याचिकाकर्ता विक्रम यादव को किडनैपिंग और हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. इसके बाद, उसने दिल्ली सरकार की 2004 की नीति के तहत अपनी रिहाई की मांग की.दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान भारत की प्राचीन परंपराओं का उल्लेख किया, जिसमें कैदियों की समय से पहले रिहाई का प्रावधान भी शामिल था. जस्टिस गिरीश कठपालिया ने इस संदर्भ में कहा कि यह परंपरा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है.दिल्ली हाईकोर्ट ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र और सम्राट अशोक के शिलालेखों का उल्लेख करते हुए कहा कि प्राचीन काल में भी कैदियों को उनके अच्छे व्यवहार, उम्र और स्वास्थ्य के आधार पर रिहा किया जाता था. कोर्ट ने बताया कि सम्राट अशोक ने 26 वर्षों में 25 बार कैदियों को रिहा किया, यह दर्शाते हुए कि उन्होंने निर्दोष या सुधारित व्यक्तियों को अधिक सजा देने के खिलाफ थे.