
नारायणपुर। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर मुख्यालय से 30 किमी दूर कस्तूरमेटा गांव में राज्य गठन के बाद पहली बार किसी कैबिनेट मंत्री ने दस्तक दी। मंत्री केदार कश्यप ने यहां का दौरा कर कस्तूरमेटा को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का आश्वासन दिया। जिले के धुर नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ क्षेत्र के कस्तूरमेटा में एक समय था कि नक्सलवाद की तूती बोलती थी। लेकिन सुरक्षा बलों के नक्सल विरोधी अभियान के बीच अब इन इलाक़ों में जाना आसान हो चुका है।
एक समय नक्सलियों की बोलती थी तूती
एक समय था अबूझमाड़ का कस्तूरमेटा गांव नक्सलगढ़ के रूप में जाना जाता था, इस गांव में सरकारी लोग जाने से भी डरते थे। लेकिन अब अबूझमाड़ की तस्वीर बदल रही है। छत्तीसगढ़ सरकार के कैबिनेट मंत्री केदार कश्यप पहुंचे। यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अबूझमाड़ को विकास की मुख्यधारा में लाने के प्रयास तेज हो रहे हैं। ताकि सरकार की योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा जा सके। किसी मंत्री के पहली बार पहुंचने पर लोगों को विकास की उम्मीद जागी है।
मंत्री ने दिया आश्वासन
जनसमस्याओं को ध्यानपूर्वक सुनने के बाद, कैबिनेट मंत्री केदार कश्यप ने जिला मुख्यालय से क्षेत्र को जोड़ने के लिए बस सेवा शुरू करने की घोषणा की। इसके अलावा यह भी आश्वासन दिया कि स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी सरकार जल्द ही आवश्यक कदम उठाएगी। ताकि क्षेत्रवासियों को सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिल सके। इसके बाद पुलिस कैंप में सुरक्षा बल के जवानों से मिलकर उनका मनोबल बढ़ाया।
छत्तीसगढ़ का सबसे अविकसित क्षेत्र में आता है अबूझमाड़ इलाका
अबूझमाड़ छत्तीसगढ़ के सबसे अविकसित और दुर्गम क्षेत्रों में से एक में आता है। यहां के लोग आज भी आज भी आधुनिक जीवन से कोसों दूर हैं। यह इलाका नारायणपुर जिले के अंतर्गत आता है। ये इलाका राज्य के दंतेवाड़ा और बीजापुर ज़िले से घिरा हुआ है और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के साथ अपनी सीमा बांटता है। वहीं ये पूरा क्षेत्र बड़ी बड़ी पहाड़ियों और जंगलो से घिरा हुआ है। जंगलों के बीच में बसे हुए इस क्षेत्र के लोग काफी मुश्किलों के साथ जीवन व्यापन कर रहे हैं। दशकों तक नक्सलियों का गढ़ होने की वजह से सरकारी तंत्र ने इस क्षेत्र से दूरी बना कर रखी।
मुख्यधारा से भी इनका कोई संपर्क नहीं। शायद कोई मकान ऐसा होगा जो पक्की ईटों और सीमेंट से बना हुआ हो। ज्यादातर यहां लकड़ी से ही बने हुए मकान है। जो दिखने में पक्के मकान नहीं लगते। कोई भी प्राकृतिक आपदा से ये टूट भी सकते है।
इन मकानों में शौचालय जैसी कोई सुविधा तक मौजूद नहीं है। इसलिए अबूझमाड़िया शौच के लिए अक्सर जंगल में जाया करते है। जो इनके स्वास्थ्य के लिए भी एक चिंता का विषय है।
ये सभी घर अलग अलग पारों या टोलो (ग्राम) में बसे हुए है। जो बेहद दूर दूर स्थित है। इस पूरे क्षेत्र में 200 गाँव स्थित है। जहां लगभग 40000 के करीब लोग रहते हैं। लेकिन ये सिर्फ एक अनुमान ही है।
जीपीएस और गूगल मैप के इस दौर में भी अबूझमाड़ में कुल कितने गांवों में किसके पास कितनी ज़मीन है, चारागाह या सड़कें हैं या नहीं या जीवन के दूसरी ज़रूरी चीजों की उपलब्धता कैसी है, इसका कोई रिकार्ड कहीं उपलब्ध नहीं है। ये गांव कहां हैं या इनकी सरहद कहां है, यह भी पता नहीं है।
इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि बस्तर के चार हज़ार वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले हुए नारायणपुर ज़िले के अबूझमाड़ में पहली बार अकबर के ज़माने में राजस्व के दस्तावेज़ एकत्र करने की कोशिश की गई थी। लेकिन घने जंगलों वाले इस इलाके में सर्वे का काम अधूरा रह गया।
ब्रिटिश सरकार ने 1909 में लगान वसूली के लिये इलाके का सर्वेक्षण शुरू किया लेकिन वह भी अधूरा रह गया। हालत ये हुई कि अबूझमाड़ के इलाकों में बसने वाली आदिवासी आबादी आदिम हालत में जीवन जीती रही। 80 के दशक में माओवादियों ने इस इलाके में प्रवेश किया और फिर इसे अपना आधार इलाका बनाना शुरू किया।
यही वो दौर था, जब अबुझमाड़ के इलाके में प्रवेश के लिये कलेक्टर से अनुमति लेने का नियम बना दिया गया। प्रवेश के इस प्रतिबंध को कई सालों बाद 2009 में ख़त्म किया गया।
एक साल पहले ही माओवादी प्रभावित इलाकों में स्कूल को फिर से खोला गया है। इन इलाकों में या तो स्कूल की बिल्डिंग मौजूद नहीं है या फिर इसे नकसलवादियों द्वारा तोड़ा जा चुका है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक माओवादी प्रभाव के कारण 2013-14 से ही कोढेर और हिरांगाई इलाके में सकूलों को बंद किया है और 2018 में मतावंड और हाथीबेड़ा में स्कूल बंद है।
इन स्कूलों को अब दोबारा खोला जा रहा है। स्कूल के अलावा शिक्षक भी बेहद कम है।
इन्हीं सब कारणों की वज़ह से इस पूरे क्षेत्र के सक्षारता दर 29.88 प्रतिशत ही रहे गया है। शिक्षा के अलावा यहां के बच्चों में कुपोषण की समस्या भी देखने को मिलती है। जो इस क्षेत्र की एक बड़ी समस्या भी है।
मुख्यधारा से संपर्क ना होने के कारण इनके बच्चों का इलाज करना भी असंभव सा हो जाता है। सड़के और साफ पानी जैसे मूलभूत सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। इन्हीं सब समस्याओं से अनुमान लगाया जा सकता है की अबूझमाड़िया किस तरीके जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
ही माओवादी प्रभावित इलाकों में स्कूल को फिर से खोला गया है. इन इलाकों में या तो स्कूल की बिल्डिंग मौजूद नहीं है या फिर इसे नकसलवादियों द्वारा तोड़ा जा चुका है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक माओवादी प्रभाव के कारण 2013-14 से ही कोढेर और हिरांगाई इलाके में सकूलों को बंद किया है और 2018 में मतावंड और हाथीबेड़ा में स्कूल बंद है।
इन स्कूलों को अब दोबारा खोला जा रहा है। स्कूल के अलावा शिक्षक भी बेहद कम है।
इन्हीं सब कारणों की वज़ह से इस पूरे क्षेत्र के सक्षारता दर 29.88 प्रतिशत ही रहे गया है। शिक्षा के अलावा यहां के बच्चों में कुपोषण की समस्या भी देखने को मिलती है। जो इस क्षेत्र की एक बड़ी समस्या भी है।
मुख्यधारा से संपर्क ना होने के कारण इनके बच्चों का इलाज करना भी असंभव सा हो जाता है। सड़के और साफ पानी जैसे मूलभूत सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। इन्हीं सब समस्याओं से अनुमान लगाया जा सकता है की अबूझमाड़िया किस तरीके जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
बीता दें कि, राज्य की 7 विशेष अनुसूचित जनजाति में अबुझमाड़िया जनजाति भी आती है। भारत के राष्ट्रपति द्वारा विशेष अनुसूचित जनजाति का दर्जा इन्हें हासिल है।