सरायपाली। सरायपाली नगर में पिछले कई सालों से मुख्य सड़कों के साथ साथ गली मोहल्लों में आवारा पशुओं के खुले में विचरण करने से सड़क में चल रहे राहगीरों, वाहन चालकों , व्यवसाइयों , व आसपास रहने वाले नागरिक व व्यवसायी बुरी तरह से परेशान हो चुके हैं । इस संबंध पिछले 3 सालों से चैनल इंडिया द्वारा इस समस्याओं से निजात दिलाने समाचारों का प्रकाशन कर प्रशासन व नगरपालिका का ध्यान आकर्षित कराया जा रहा है किंतु दुखद की आज पर्यंत तक इस ओर कोई कार्यवाही नहीं की गई । शासन का रोक छेका कार्यक्रम भी फाइलों में सीमित होकर रह गया है । इससे भी दुखद यह कि इस समस्याओं पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों,नागरिकों,व्यवसाइयों,नेताओ, पशुपालकों व नगरपालिका भी ने भी कभी ध्यान नहीं दिया । कार्यवाही नहीं किये जाने के लिए स्थानीय संबंधित प्रशासन के साथ-साथ पशु पालक सर्वाधिक दोषी हैं । दूध दुहने के बाद अधिकांश पशु पालक पशुओं को चरने खुले में छोड़ देते हैं । जिस दिन स्थानीय प्रशासन पशुओं को आवारा छोडऩे व उनसे होने वाले नुकसानों की भरपाई की कड़ी कार्यवाही शुरू करेगा उस दिन से यह समस्या काफी हद तक दूर हो जायेगी। अभी वर्तमान में यह समस्या सिर्फ सरायपाली की नहीं है । सरायपाली से रायपुर तक सड़कों में सैकड़ों की संख्या में पशुओं को झुंडों में देखा जा सकता है ।
शासन द्वारा चलाए जा रहे रोका छेका अभियान के बावजूद इन दिनों शहरों से लेकर गांव तक मवेशियां खुलेआम आवारा घूम रहे हैं। लाखों रुपए में निर्मित गौठान भी मवेशियों को न तो आकर्षित कर पा रहे हैं न ही ग्राम पंचायतें भी इन गोठनों का उपयोग करने में रुचि ले रहे हैं। लिहाजा दिन भर खेतों में लगी फसल को नुकसान पहुंचाने के बाद यही मवेशी शाम होते ही शहर की गलियां एवं सड़क पर ही अपना डेरा जमा लेते हैं। सड़कों पर ही बैठे रहने से जहां आवागमन बाधित हो रहा है वहीं हमेशा दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है। सड़क दुर्घटना के चलते ही कई बेजुबान मवेशियों की जान भी जा रही है। इन मवेशियों ने कई राहगीरों को मारकर घायल भी किया है ।पिछले शुक्रवार को ही सरायपाली शहर क्षेत्र में 2 मवेशियों की अकाल मौत हो गई थी, जिनका अंतिम संस्कार माटी के लाल सेवा समिति द्वारा किया गया है । इधर ग्रामीण अंचलों में आवारा मवेशियों के द्वारा फसल को नुकसान पहुंचाए जाने से किसान काफी चिंतित हैं। शासन द्वारा प्रशासन को रोका छेका अभियान चलाने के निर्देश दिए गए हैं। गांव में इसके लिए मुनादी भी करा दी गई है। फिर भी पशुपालक अपने मवेशियों को बांधकर नहीं रख रहे हैं। गांव में गर्मी के दिनों अपने मवेशियों को आवारा छोड़ देते हैं और खरीफ फसल की बुवाई होते ही किसान अपने अपने मवेशियों को घरों में बांध कर चराई की व्यवस्था करते हैं जिससे स्थानीय भाषा में रोका छेका कहा जाता है। छत्तीसगढ़ सरकार इस ग्रामीण परंपरा को ग्रामीण संस्कृति से जोड़कर रोका छेका अभियान चला रही है। लगता है शासन की इस महत्वकांक्षी अभियान को प्रशासन उतनी गंभीरता से नहीं ले रहा है।
नरवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी योजना को खूब प्रचारित किया जा रहा
छत्तीसगढ़ सरकार की नरवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी योजना को खूब प्रचारित किया जा रहा है। इसके तहत प्रत्येक ग्राम पंचायतों में लाखों रुपए खर्च कर गोठान बनाए गए हैं तथा शासन स्तर पर किसानों के गोबर खरीदी की भी व्यवस्था की गई है। उसके बावजूद मवेशी अब भी सड़को पर विचरण कर प्रशासन के रोका छेका अभियान को चुनौती दे रहे हैं । इस तरह मवेशियों के आवारा घूमने से रोका छेका अभियान एवं नरवा गरवा घुरवा बाड़ी योजना पर एक तरह से पलीता लगाया जा रहा है । किसान लोगों का यह भी मानना है कि इस योजना की एक बार पुन: समीक्षा होनी चाहिए । किसान पूरी तरह से खरीफ फसल की तैयारी में जुट गए हैं बुवाई का काम अंतिम चरण में हैं । पहले बुआई करने वाले धान की फसल लाल आने लगी है उन फसलों को आवारा पशुओं से बचाने की बड़ी चुनौती किसानों के समक्ष बनी हुई है । कई किसान तो धान की नर्सरी को बचाने के लिए साडिय़ों से घेर रखा है । किसानों का कहना है कि मवेशी दिन हो या रात खेतों में पहुंचकर फसल को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं । खेत गीला होने से मवेशियों के पैरों के नीचे छोटे पौधे धान दलहन तिलहन की छोटे पौधे खराब हो रहे हैं । मवेशियों द्वारा खेतों में रोपाई के लिए भी तैयार कर रहे नर्सरी को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है । ग्रामीणों का कहना है कि जिन किसानों के पास मवेशी है वही अपने मवेशियों को देखभाल नहीं कर पा रहे हैं । नतीजन मवेशी दिनभर खेतों में डेरा जमाए हुए हैं तो रात होते ही गांव की गलियों और सड़कों पर इन मवेशियों का बसेरा हो जाता है । शाम होते ही सड़क गौशाला के रूप में परिवर्तित हो जाता है । सड़को पर बैठे इन मवेशियों को हटाने वाहन चालक हॉर्न पर हॉर्न बजाते रहते हैं मगर मवेशी है कि उठने का नाम नहीं लेते । मवेशियों के इस जमावड़े के चलते ही आवागमन बुरी तरह से बाधित हो रही है तथा हमेशा दुर्घटना की आशंका भी बना देती है । कई बार तो वाहनों की टक्कर से कई बेजुबान पशुओं की जान भी जा चुकी है पिछले दिनों ही सरायपाली शहर क्षेत्र के ताडिया मिल के सामने सड़क दुर्घटना में ही दो गायों की मौत हो गई है जिसे स्थानीय सेवा माटी के लाल सेवा समितियों द्वारा अंतिम संस्कार किया गया हैै।