
छतीसगढ़ के सरगुजा जिले का सीतापुर शहर नशे का गढ़ बन रहा है। नशे के कारण युवा अपना भविष्य बर्बाद कर रहे है तो वही, नशे के कारण ही शहर में लगातार आपराधिक गतिविधि भी बढ़ रही हैं। इसके बावजूद शासन का मौन बडे सवाल खड़े कर रहा है। इस नशा तस्करी के प्रति सरकार आंखें मूंदें बैठी हैं। राजनेताओं और अफसरशाही में भी कुछ ऐसे लोग हैं जिनकी वजह से नशा तस्करी को रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा है। नशा तस्करी की आड़ में कई अधिकारी मालामाल हो चुके हैं।
रात होते ही यहाँ नशेडियों का अड्डा बन जाता है। नशेली दवाइयों का उपयोग तो खुलेआम चल रहा है। प्रशासनिक जगहों पर भी नशेड़ियों ने अड्डा बन रखा है। पुलिस प्रशासन मौन बैठी है। आखिर युवाओं के भविष्य खतरे में प्रशासन ही डाल रही है। यहाँ किसी प्रकार से कभी कोई चेकिंग नहीं की जा रही, जिससे कि लोगों में खौफ है।
सरकार में ईमानदार राजनेता और नौकरशाह हो तो ऐसे धंधे कुछ दिनों में चौपट हो सकते हैं, परन्तु राजनेताओं को चुनाव में धन की जरूरत होती है। उनकी तिजोरी ऐसे लोग ही भरते हैं। कई सरकारी अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी को सही ढंग से नहीं निभाते। दूसरी ओर देश में शराब के ठेकों की अरबों रुपए में नीलामियां सरकार की आमदन का साधन बनी हुई हैं। क्या शराब नशा नहीं है? इसके पीने पर प्रतिबंध क्यों नहीं लग सकता।