
पखांजूर में बरसात आते ही नाला उफान पर होता हैं और सैकड़ो ग्रामीणों की ज़िन्दगी मुख्यधारा से कट जाती हैं। कई दिनों तक जब पानी का बहाव कम नहीं होता तो मजबूरन स्कूली छात्रों को अपनी जान खतरे में डालकर उफ़नते हुए नाले को पार करके स्कूल जाना पड़ता हैं। गर्भवती महिलाओं को चारपाई में लेटाकर ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डालकर अपने कंधो पर लादकर उफनते नाले को पार कर अस्पताल तक पहुँचाते हैं।
ग्रामीणों का कहना हैं कि जीते जी तो हम बहुत तकलीफो में होते हैं, पर मरने के बाद में परेशानियां कम नहीं होती, क्योंकि नाले पर पुलिया न होने के चलते शवों को शमशान तक नहीं ले जाया जा सकता, जिसके चलते ग्रामीणों को मजबूरन अपने खेतो में शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ता हैं। शवों को शमशान तक नसीब नहीं हो पता। ग्रामीणों ने कई दफ़े पंचायत के सरपंच-सचिव सहित जिला कलेक्टर तक को इस पुलिया के लिए आवेदन दे चुके हैं, परन्तु सालों बाद भी आज तक इन बेबस ग्रामीणों को एक पुलिया तक नसीब नहीं हो पाया हैं।
चुनाव आते ही जनप्रतिनिधि गाँव के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचते हैं और गाँव के अंतिम छोर तक विकास की लहर पहुँचाने का वादा और दावा करते हैं। कोयलीबेड़ा जनपद के ग्रामपंचायत आलोर में प्रत्येक पंचायत चुनाव में जनप्रतिनिधि आश्वासनों की झड़िया लगा देते हैं, परन्तु सत्ता के सिंहासन में बैठने के बाद जनप्रतिनिधि के दावे और वादे दोनों ही गुम हो जाते हैं। जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के इसी उदासीनता के चलते आलोर के लगभग 30 परिवारों को 60 साल बाद भी एक अदद पुलिया तक नसीब नहीं हो पाया हैं।