रायपुर, 30 मई 2025:भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार के नेतृत्व में कार्यभार संभालने के पहले 100 दिनों के भीतर देश की चुनाव प्रणाली में पारदर्शिता, तकनीक और मतदाता सुविधा को बढ़ाने के उद्देश्य से 21 नई पहलें लागू की हैं। यह कदम लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आधुनिक और सशक्त बनाने की दिशा में ऐतिहासिक साबित हो रहे हैं।
मुख्य सुधार और पहलें:
- मतदान केंद्रों पर भीड़ नियंत्रण: अब प्रति बूथ अधिकतम 1,200 मतदाता, जिससे बेहतर प्रबंधन।
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शहरी मतदाता राहत: ऊँची इमारतों और कॉलोनियों में नए बूथ स्थापित।
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नामावली अपडेट सिस्टम: मृत्यु पंजीकरण डेटा RGI से जोड़कर नाम काटने की सुविधा।
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मतदाता पर्ची में सुधार: पर्ची पर क्रमांक और भाग संख्या को प्रमुखता दी जाएगी।
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मोबाइल जमा सुविधा: मतदान केंद्र के बाहर मोबाइल रखने की सुरक्षित व्यवस्था।
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4,719 सर्वदलीय बैठकें: 28,000 से अधिक प्रतिनिधियों की भागीदारी।
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प्रमुख दलों से संवाद:AAP, BJP, BSP, CPI(M), NPP जैसे दलों से सीधा संवाद।
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IIIDEM प्रशिक्षण कार्यक्रम: बिहार, तमिलनाडु, पुडुचेरी में विशेष बूथ एजेंट ट्रेनिंग।
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प्रचार नियम में बदलाव: अब प्रचार बूथ 100 मीटर की दूरी पर लगाए जा सकेंगे।
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ECINET डैशबोर्ड: 40+ ऐप्स और वेबसाइट्स को जोड़ता एकीकृत प्लेटफार्म।
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यूनिक EPIC नंबर: डुप्लिकेट EPIC नंबर की समस्या का समाधान।
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28 प्रमुख हितधारकों की पहचान: निर्वाचन प्रक्रिया में समावेशी भागीदारी।
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प्रशिक्षण सामग्री का विकास: अधिनियमों और नियमों पर आधारित मॉड्यूल।
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कानूनी नेटवर्क मजबूत:निर्वाचन से जुड़े वकीलों का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित।
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BLO पहचान पत्र:बूथ लेवल अधिकारियों के लिए मानकीकृत फोटो ID कार्ड।
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BLO/सुपरवाइजर प्रशिक्षण: 6,000 से अधिक BLO को आगामी 45 दिनों में प्रशिक्षण।
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मीडिया प्रशिक्षण कार्यक्रम: सभी राज्यों/UT के CEO कार्यालयों में मीडिया गाइडेंस।
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पुलिस प्रशिक्षण: बिहार में चुनाव प्रक्रिया के लिए विशेष पुलिस ट्रेनिंग।
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बायोमेट्रिक उपस्थिति: स्टाफ की उपस्थिति में पारदर्शिता और जवाबदेही।
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ई-ऑफिस सिस्टम: निर्वाचन कार्यों का डिजिटलीकरण और दक्षता में सुधार।
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नियमित समीक्षा बैठकें:सभी राज्यों के CEO के साथ सतत संवाद।
क्यों खास हैं ये पहलें?
इन सुधारों का मकसद मतदाता अनुभव को सहज बनाना, तकनीक का अधिकतम उपयोग करना और सभी हितधारकों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना है। इससे ना केवल मतदान प्रक्रिया पारदर्शी बनी है, बल्कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में मतदाता जागरूकता और भागीदारी में भी वृद्धि होने की संभावना है।









