
लोकसभा चुनाव का रिजल्ट 4 जून को किसके पक्ष में आएगा। इन सवालों और नतीजों से पहले फिर EVM की विश्वसनियता पर सवाल उठना शुरू हो गया है। 2009 के लोकसभा चुनाव में पहली बार ईवीएम मशीन पर सवाल खड़े किए गए थे। उस समय भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी और तत्कालीन जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने ईवीएम के जरिए चुनावों में धांधली के आरोप लगाए थे। अगले ही साल 2010 में बीजेपी नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने भी ईवीएम पर सवाल खड़े किए थे। उस समय सुब्रमण्यम स्वामी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गए थे। मार्च 2017 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद 10 अप्रैल 2017 को 13 राजनीतिक दल चुनाव आयोग गए और ईवीएम पर सवाल उठाए।
लोकसभा चुनाव के लिए सातवें और आखिरी चरण की लड़ाई चल रही है। 1 जून को 8 राज्यों की 57 सीटों पर मतदान होना बाकी है। वोटिंग से पहले फिर EVM पर विवाद शुरू हो गया है। 4 जून को जनादेश आने से पहले विपक्ष के नेता EVM की माला जपने लगे हैं। EVM में टेंपरिंग की गुंजाइश है या नहीं फिलहाल इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है, लेकिन इसे लेकर आरोप-प्रत्यारोप की सियासत छत्तीसगढ़ में भी जारी है।
पीसीसी चीफ दीपक बैज ने कहा कि चुनाव आयोग मतदान के बाद आ रहे वोट परसेंट की स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए। मतदान के 10-12 दिन बाद वोटिंग परसेंटेज बढ़ना सभी राजनीतिक दलों के लिए चिंता की बात है। इस पर बीजेपी ने पलटवार किया कि विपक्ष देश के लोकतंत्र को बदनाम कर रहा है।
EVM पर शंका और सवाल नया नहीं हैं। इसके पक्ष और विपक्ष दोनों के अपने-अपने तर्क हैं। वास्तविकता यह है कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट तक दखल से इंकार कर चुकी है। चुनाव आयोग भी साफ कर चुका है कि देश में चुनाव EVM से ही होंगे, क्योंकि मौका देने पर भी EVM पर शंका करने की कोई ठोस वजह दल नहीं दे पाए हैं।