खेतों में आग लगाने का मामला अक्सर सामने आता रहता है। गर्मी में यह और बढ़ जाती है। खेत खालिहान में धान की फसल कटने के बाद बचे हिस्से को पलारी कहते हैं। पहले किसान अपने फसल खुद काटते थे तो बहुत थोड़ा हिस्सा खेतों में रहता था, जिसे जलाने की जरुरत नहीं होती थी। पिछले कुछ सालों से धान की फसल की पेड्डी क्रॉप कटाई मशीनों से की जाती है। मशीन फसल का सिर्फ उपरी हिस्सी काटती है, बाकी का हिस्सा जमीन में रह जाता है। किसानों के पास दूसरी फसल की बुआई करने के लिए कम समय रहता है। ऐसे इन पराली को काटने के बजाय खेतों में जला देते हैं।
खेतों में पराली जलाने से पर्यावरण प्रभावित तो होता ही है, मिट्टी में मौजूद कई मित्र जीव-जंतु मर जाते हैं। इसे देखते हुए कृषि विभाग ने जिले के किसानों को आगाह कर रहे है कि खेतों में पलारी ना जलाएं। पराली के राख से खेत की मिटटी में पाया जाने वाला राइजोबिया बैक्टीरिया पर खराब असर पड़ता है। इस बैक्टीरिया द्वारा ही नाइट्रोजन जमीन तक पहुंचाता है, जिससे पैदावार क्षमता बढ़ती है। पराली जलाने से मिट्टी में हुए नुकसान से फसलों की पैदावार पर कम हो जाती है।
खेतों में लगातार पराली जलाने की शिकायत मिलने के बाद विभाग ने टीम घटित कर किसानों से पलारी ना जलाने की अपील कर रहे हैं। विभाग ने पलारी जलाने के कानून के मुताबिक अर्थ दंड का भी रखा है। यदि कोई अपने खेतो में पलारी जलाता है तो उन्हें ढाई हजार से 15 हजार तक अर्थ दंड देना होगा। खेत में पराली जलाना, भारतीय दंड संहिता की धारा 188 (IPC 188) के तहत गैरकानूनी माना गया है। दोषी पाए जाने पर इस धारा के तहत, 6 महीने का कारावास या 15 हजार रुपए का जुर्माना हो सकता है।