
बिलासपुर छत्तीसगढ़ का दूसरा सबसे बड़ा शहर है, लिहाजा शहर का विकास तेजी से हो रहा है। अवैध प्लाटिंग और अतिक्रमण बिलासपुर शहर की बड़ी समस्या है। इस अतिक्रमण और अवैध प्लाटिंग की जद में बिलासपुर शहर के तालाब भी आने लगे हैं। शहर के अंदर और बाहरी इलाकों के कई तालाब अब अपना अस्तित्व खो चुके हैं। इसका असर शहर के भू जल स्तर पर भी पड़ रहा है। बिलासपुर शहर के बीचों बीच स्थित करबला तालाब है। कभी यह तालाब पानी से लबालब होता था और शहर की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस तालाब में निस्तारी के लिए निर्भर हुआ करता था। तब तालाब के चारों ओर हरे-भरे पेड़ भी हुआ करते थे। आज तस्वीर बदल चुकी है। यह तालाब पूरी तरह से कंक्रीट के जंगल से घिर चुका है। शहर के इस तालाब के चारों ओर अवैध अतिक्रमण से मकानों का निर्माण कर लिया गया। इस तालाब तक जाने का अब कोई रास्ता तक नहीं बचा है।
ऐसी ही स्थिति बिलासपुर शहर के कई अन्य तालाबों की भी है। शहर के कई बड़े तालाब अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं। कई पर तो अवैध प्लाटिंग कर कॉलोनियां भी बना दी गई हैं। कई तालाबों का अस्तित्व मिट चुका है और कई खत्म होने की कगार पर हैं। बिलासपुर शहर के करबला तालाब के साथ चिंगराजपारा, चांटीडीह और मामा भांजा तालाब समेत आधा दर्जन बड़े तालाब अब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। कई छोटे तालाब तो पूरी तरह से पट गए और वहां अब ऊंची इमारतें और कॉम्प्लेक्स खड़े नज़र आते हैं। निगम और प्रशासन के नजर में यह तमाम अतिक्रमण हैं। फिर भी इनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिसका खामियाजा शहर के प्रसिद्ध पुराने तालाबों को उठाना पड़ रहा है। हालांकि निगम का दावा है कि ऐसे तमाम तालाबों को चिन्हांकित कर वहां से अवैध अतिक्रमण हटाया जाएगा, क्योंकि ये सभी तालाब पर्यावरण के लिए आवश्यक हैं।
अगर आंकड़ों की बात की जाए तो राजस्व दस्तावेजों में पुराने नक्शे के अनुसार शहर के अंदर 11 सरकारी तालाबों का उल्लेख है। वहीं नए परिसीमन के बाद निगम क्षेत्र में 40 तालाब हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश पर कब्जा हो चुका है और अधिकांश तालाब अब अपना अस्तित्व खो चुके हैं। निजी तालाबों के संबंध में कोई पुष्ट दस्तावेज राजस्व विभाग के पास नहीं हैं। इन पर सर्वे किया जा रहा है। निगम ने बिलासपुर की सीमा में एक बड़ा जियोग्राफिकल सर्वे भी कराया था, जिनमें कई तालाबों की पहचान भी हुई थी। यह सभी तालाब वस्तुस्थिति में गायब ही हैं। तालाबों पर इस तरह के कब्जे का सीधा असर बिलासपुर शहर के पर्यावरण और भूमिगत जल स्तर पर भी पड़ रहा है। तालाबों में पानी भरे रहने से अंडरग्राउंड वॉटर अपने आप रिचार्ज होता रहता है। तालाबों पर कब्जा होने से जमीन के अंदर पानी पहुंचाने के बड़े-बड़े स्रोत अब विलुप्त होते जा रहे हैं। शहर का भूमिगत जल स्तर तेजी से घटता जा रहा है। आने वाला कल बिलासपुर के लिए भयावह भी हो सकता है।
पर्यावरण के जानकार मानते हैं कि प्रशासन और समाज के सहयोग से इस समस्या को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए बड़े स्तर पर कदम उठाने होंगे। निगम का दावा है कि जल्द ही तालाबों के संरक्षण की दिशा में बड़े कदम उठाए जाएंगे। दूसरी ओर शहर के आपराधिक तत्व और भूमाफिया शहर के बड़े तालाबों पर गिद्ध की तरह नजर गड़ाए बैठे हैं। इन गिद्धों की नजर न सिर्फ शहर, बल्कि शहर के बाहरी इलाकों के सरकारी और निजी तालाबों पर भी है। ऐसे में इन पर लगाम लगाना और शहर के तालाबों को पुनर्जीवित करना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती होगा।