न्यूटन के सिंद्धांतों का राज खोलने के लिए अब रामचरित मानस की चौपाईयों का सहारा लिया जाएगा। इस पर रिसर्च शुरू हो गया है। सनातन धर्म के रहस्यों को वैज्ञानिकता की कसौटी पर कसने का सिलसिला जारी है। इस पर शोध में बात सामने आयी है कि आज का आधुनिक विज्ञान पुरातन सनातन धर्म के विज्ञान से आज काफी पीछे हैं। सतानधर्म के अध्यात्म या ज्योतिष विज्ञान आदिकाल में ही ग्रहों की गणना और उनकी दूरी को तय कर दिया था। जो बाद में चलकर इन्हीं सनातन धर्म के सूत्रों के आधार पर आधुनिक विज्ञान का भी जन्म हुआ।
आज भले ही महान गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी, ज्योतिष व दार्शनिक सर आइजक न्यूटन ने भले ही वर्ष 1687 में अपने शोध पत्र ‘प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांत’ से गुरुत्वाकर्षण और गति के नियमों की गुत्थी सुलझा दी थी और यह भी साबित किया था कि सभी सिद्धांत प्रकृति से जुड़े हैं। इसके बावजूद आज भी गणित, भौतिक और रसायन विज्ञान के बुनियादी सिद्धांतों की जटिलता बनी हुई है। राजधानी भोपाल में स्थित भोज मुक्त विश्वविद्यालय इन्हीं गुत्थियों के सिरे अब श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों के माध्यम से खोलने जा रहा है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय संस्कृति को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए विश्वविद्यालय ने सत्र 2021-22 से श्रीरामचरितमानस में एक नया डिप्लोमा कोर्स शुरू किया है। इस पाठ्यक्रम में श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों को भौतिक, रसायन, जीवविज्ञान और पर्यावरण विज्ञान से जोड़कर पढ़ाया जाएगा, ताकि यह समझा जा सके कि सनातन धर्म भी विज्ञान आधारित है। पाठ्यक्रम की सामग्री उत्तर प्रदेश के अयोध्या शोध संस्थान की मदद से तैयार की जा रही है। इसके तहत विद्यार्थियों को श्रीराम नाम लिखे पत्थर समुद्र में तैर गए या रावण का पुष्पक विमान किस गति से उड़ान भरता था, आदि के बारे में बताया जाएगा। साथ ही श्रीराम के वनवास के दौरान प्राकृतिक सौंदर्य को पर्यावरणीय विज्ञान के माध्यम से समझाया जाएगा।
यह डिप्लोमा कोर्स विद्यार्थी 12वीं के बाद कभी भी कर सकते हैं। इस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए उम्र की बाध्यता नहीं है। यह एक साल का डिप्लोमा कोर्स होगा। इसमें नामांकन के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जो 31 मार्च तक चलेगी।
इन चौपाइयों गूढ़ रहस्य जानकर विज्ञान को समझेंगे विद्यार्थी
-उत्तरकांड की ‘हिमगिरि कोटी अचल रघुवीरा, सिंधु कोटि सत राम गंभीरा’ चौपाई से भौतिकी की विभिन्न क्रियाओं को समझ सकते हैं। श्रीरामचरितमानस में वर्णित इस पूरी चौपाई में ईश्वरीय कण (कणों) की शक्ति को विस्तृत वर्णित किया गया है। इसमें विद्युतीय, चुंबकीय आकर्षण बलों और गुरुत्वाकर्षण एवं परिणामी बलों के बारे में समझाया गया है।
-बालकांड की अज अखंड अनंत अनादी, जेहि चिंतहि परमारथवादी… चौपाई से भौतिक व रसायनिक क्रियाओं को समझाया गया है।
-बालकांड की व्यापक विश्वरूप भगवाना, तेहिं धरि देह चरित कृत नाना… चौपाई से जीव विज्ञान को समझाया जाएगा।
-बालकांड में सब के हृदय मदन अभिलाषा, लता निहारि नवहिं तरू साखा…चौपाई से पर्यावरण विज्ञान को समझाया जाएगा।
पर्यावरण संरक्षण का भी उल्लेख अन्य पाठ्यक्रमों के साथ भी इसे कर सकते हैं
भोज विश्वविद्यालय के कुलपति ने बताया भोज विवि के कुलपति ने बताया कि यह डिप्लोमा कोर्स है। इसे ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, कर्मकांड या अन्य किसी भी पाठ्यक्रम के साथ कर सकते हैं। इस पाठ्यक्रम को इस प्रकार तैयार किया गया है कि इसे करने से धर्म के साथ-साथ वैज्ञानिक व सामाजिक पहलुओं की जानकारी मिलेगी।
श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों से धर्म और विज्ञान के परस्पर संबंध को पढ़ाया जाएगा। इसके लिए अयोध्या शोध संस्थान की मदद से पाठ्य सामग्री तैयार कर ली गई है। इस सत्र से नामांकन प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
श्री रामचरितमानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा 16वीं सदी में रचित एक इतिहास की घटना है। इस ग्रन्थ को अवधी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है। इसे सामान्यतः ‘तुलसी रामायण’ या ‘तुलसीकृत रामायण’ भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है
आज ‘चतुर्वेद’ के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है –
ऋग्वेद – सबसे प्राचीन तथा प्रथम वेद जिसमें मन्त्रों की संख्या 10627 है। ऐसा भी माना जाता है कि इस वेद में सभी मंत्रों के अक्षरों की संख्या 432000 है। इसका मूल विषय ज्ञान है। विभिन्न देवताओं का वर्णन है तथा ईश्वर की स्तुति आदि।
यजुर्वेद – इसमें कार्य (क्रिया) व यज्ञ (समर्पण) की प्रक्रिया के लिये 1975 गद्यात्मक मन्त्र हैं।
सामवेद – इस वेद का प्रमुख विषय उपासना है। संगीत में गाने के लिये 1875 संगीतमय मंत्र।
अथर्ववेद – इसमें गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 5977 कवितामयी मन्त्र हैं।