मैं धरती की मधुर सुगंध हूं। मैं अग्नि की उष्मा हूं सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का। आत्म संयम भी मैं ही हूं। ।
संपूर्ण जगत ब्रह्मांड चर-अचर सब में ईश्वर का वास है। यह ईश्वर की माया ही है जो पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है। वही ईश्वर धरती पर मधुर संगीत है , वही ईश्वर अग्नि की उष्मा है। उसी ईश्वर का वास प्रत्येक प्राणियों में है। जो सन्यासियों के चित्त को शांत कर साधना में लीन करता है , वह आत्म संयम भी ईश्वर ही है।