महिमा पाठक, रायपुर। मां बनना हर औरत के लिए एक सुखद अनुभूति होती है। 9 महीने गर्भ में बच्चे को रखना और उसका जतन करने के लिए मां हर संभव प्रयास करती है जिससे उसका सही तरह से विकास हो सके। लेकिन दुनिया में फैली कोरोना महामारी ने इस सुखद अनुभूति को एक चुनौती में बदल दिया। कुछ ऐसी ही चुनौती का सामना सुधा ठाकुर को भी करना पड़ा, जब गर्भवती होने के दौरान उन्हें कोरोना हो गया। यह ईश्वर का चमत्कार ही है जो इतनी बड़ी परीक्षा लेने के बाद उसे उतनी ही सुखद अनुभूति यानि की दोबारा एक बेटे की मां बनने का भी एहसास हो गया।
शासकीय कर्मचारी सुधा ठाकुर राजधानी में रहती हैं। सुधा खुद को कोरोना से नहीं बच पाई लेकिन उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और बच्चों के मोह में कोरोना को मुंह तोड़ जवाब दिया। सुधा की 5 साल की एक बेटी है। गर्भावस्था के दौरान उन्हें और पूरे परिवार को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया इस दौरान उनकी बेटी ही थी जो इस संक्रमण से बची रही। सुधा कहती हैं की गर्भावस्था में वैसे ही बहुत सारी सावधानियां रखनी होती है और जब पता चला कि परिवार के अन्य सदस्यों को कोरोना हो गया है तो उन्हें भी इस बात का अंदेशा हो गया कि संभवत उन्हें भी कोरोना अपने संक्रमण में जकड़ लिया होगा, हुआ भी वैसा ही। तीन-चार दिन बाद सुधा और उनके पति की भी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। उस समय सुधा गर्भावस्था के दूसरे पड़ाव यानी कि पांचवे महीने में प्रवेश कर चुकी थी। वह बताती हैं कि कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद सबसे ज्यादा चिंता उन्हें अपनी बेटी की हुई और उसके बाद उन्हें यह चिंता हुई कि गर्भ में पल रहा बच्चा भी स्वस्थ रहें।
इस दौरान उन्होंने अपने आप को हॉस्पिटलाइज करने का निश्चय किया पति पत्नी समेत परिवार के सभी सदस्य हॉस्पिटल में एडमिट हो गए। परीक्षा की घड़ी यहीं नहीं खत्म हुई थी। वह अपने पति के साथ एक रूम में एडमिट थी लेकिन ऑक्सीजन लेवल कम होने के कारण चार-पांच दिन के बाद ही उनके पति को आईसीयू में शिफ्ट करना पड़ा वह बताती है कि या 6 दिन बड़े ही मुश्किल से बीते। वह शुक्रिया अदा करती है ईश्वर का जिन्होंने उनका साथ दिया और ईश्वर के रूप में उस गायनिक डॉक्टर का जो उनकी और बच्चे की सुरक्षित रखा। वह कहती हैं, कोरोना से स्वस्थ होने के बाद भी मन में यह कश्मकश बना ही रहता था गर्भ में पल रहे बच्चे को किस तरह की परेशानी ना हो। आखिरकार नौ महीने बाद यह इंतजार खत्म हो गया और प्यारी सी किलकारी उनके घर गूंज उठी। उन्होंने एक स्वस्थ और प्यारे से पुत्र को जन्म दिया। सुधा कहती हैं जीवन की बड़ी परीक्षा में से एक यह परीक्षा थी गर्भावस्था में कोरोना होना। लेकिन वह कहते हैं ना मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है और वही मेरे साथ हुआ भगवान ने मुझे परीक्षा के जंजाल में ढकेल तो दिया लेकिन उसे बाहर निकालने के लिए परिवार वालों की हिम्मत और डॉक्टरों का साथ भी दिया। आज मैं बहुत खुश हूं कि कोरोना काल में मैंने पुत्र को जन्म दिया साथ ही अपनी बेटी को भी सुरक्षित रखा।
आइसोलेट होने के दौरान मेरी बड़ी बेटी ने भी बड़ी परीक्षा दी वह लंबे समय तक अपनी बुआ और दादी के साथ रहकर हर दिन या प्रार्थना करते रहती थी कि मेरी मम्मी पापा और परिवार के सभी सदस्य जल्दी ठीक हो जाए।
कवि शैलेश लोढ़ा की एक कविता है:
हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है
हम कुंठित हैं तो वह एक अभिलाषा है
बस यही माँ की परिभाषा है।
हम समुंदर का है तेज तो वह झरनों का निर्मल स्वर है
हम एक शूल है तो वह सहस्त्र ढाल प्रखर
हम दुनिया के हैं अंग, वह उसकी अनुक्रमणिका है
हम पत्थर की हैं संग वह कंचन की कृनीका है
हम बकवास हैं वह भाषण हैं हम सरकार हैं वह शासन हैं
हम लव कुश है वह सीता है, हम छंद हैं वह कविता है।
हम राजा हैं वह राज है, हम मस्तक हैं वह ताज है
वही सरस्वती का उद्गम है रणचंडी और नासा है।
हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है।
बस यही माँ की परिभाषा है।