कोरोना संक्रमितों के संपर्क में आने वाले हर किसी व्यक्ति को तब तक जांच कराने की जरूरत नहीं है जब तक कि वह अत्यधिक जोखिम वाली श्रेणी में न हो। सरकार की तरफ से जारी एक नई एडवाइजरी में यह बात कही गई है। अत्यधिक जोखिम वाले लोगों में उन्हें रखा गया है, जिनकी उम्र ज्यादा है या जो पहले से ही गंभीर रोगों से ग्रस्त हैैं।
कोरोना के लिए उद्देश्यपूर्ण परीक्षण रणनीति पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की तरफ से यह एडवाइजरी जारी की गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि एक से दूसरे राज्यों में यात्रा करने वालों को भी कोरोना जांच कराने की आवश्यकता नहीं है।
इसमें कहा गया है कि आरटी-पीसीआर, ट्रूनेट, सीबीएनएएटी, सीआरआइएसपीआर, आरटी-एलएएमपी, रैपिड मालिक्यूलर टेस्टिंग सिस्टम या रैपिड एंटीजन टेस्ट (आरएटी) के जरिये ही जांच कराई जा सकती है। खुद से ही जांच कराने वाले या आरएटी और मालिक्यूलर जांच के नतीजों को सही माना जाएगा और दोबारा जांच कराने की जरूरत नहीं होगी, परंतु अगर किसी में संक्रमण् के लक्षण् नजर आ रहे हैैं तो उसे उपरोक्त टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव आने पर भी आरटी-पीसीआर जांच करानी होगी।
सामुदायिक सुविधाओं में रहने वाले बिना लक्षण वाले लोगों, घर और कोरोना केयर सेंटरों में आइसोलेशन में रहने वाले मरीज को भी नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक डिस्चार्ज होने पर कोरोना टेस्ट कराने की आवश्यकता नहीं है। अस्पताल में भर्ती मरीजों की भी हफ्ते में सिर्फ एक बार कोरोना जांच की जाएगी।
सेना के मेडिकल कोर ने भी कहा है कि डेल्टा और बीटा की तुलना में कोरोना का ओमिक्रोन वैरिएंट कम घातक है और इससे संक्रमित होने वालों को सेना में क्वारंटाइन करने की जरूरत नहीं है। वाइस एडमिरल रजत दत्ता के नेतृत्व वाले सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा महानिदेश्ाालय ने जांच और क्वारंटाइन पर अपनी नीति में यह बात कही है।
महानिदेशालय ने कहा कि अब तक अध्ययनों से साफ है कि ओमिक्रोन श्वसन नली के ऊपरी भाग को प्रभावित कर रहा है और फेफड़े को नहीं। ऐसे में अगर सैनिकों को किसी एक जगह पर क्वारंटाइन किया जाता है तो उनसे और लोग संक्रमित हो सकते हैैं और इसके चलते सैन्य परिसर में कंटेनमेंट जोन बनने का खतरा बढ़ जाएगा।