
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पितृगण तिथि आने पर वायु रूप में घर के दरवाजे पर दस्तक देते हैं। वह अपने स्वजनों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं। जब उनके पुत्र या कोई सगे संबंधी श्राद्ध कर्म करते हैं तो वे तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं। पितरों की प्रसन्नता से दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, राज्य सुख, स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसका उसके परिवार के सदस्यों द्वारा श्राद्धकर्म करना जरूरी होता है। विधि-विधान से मृत्यु के बाद परिवार के सदस्यों का तर्पण या पिंडदान न किया जाये तो उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है।
साहिंदी पंचांग के अनुर, हर वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि और आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तक पितृपक्ष रहता है। इस बार पितृपक्ष 10 सितंबर, शनिवार से 25 सितंबर रविवार तक रहेंगे। पितृपक्ष के दौरान पितरों की पूजा और उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण या पिंडदान करने की परंपरा निभाई जाती है। पितृपक्ष के 15 दिनों में पितरों की पूजा, तर्पण और पिंडदान करने से पित्तर प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पितृगण की पिडदान न करने पर उसकी आत्मा मृत्यु लोक में भटकती रहती है। मान्यता है कि हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है, लेकिन पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने और बिहार के गया में पिंडदान करने का अलग ही महत्व होता है। पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए पितृपक्ष में उनका श्राद्ध करना चाहिए।
ऐसे करें पितरों श्राद्धकर्म
-मान्यता है जिस पित्तर की मृत्यु जिस तिथि को होती है उसी तिथि को श्राद्धकर्म किया जाता है। अगर किसी परिजन की मृत्यु की सही तारीख पता नहीं है तो आश्विनी अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध किया जा सकता है। पिता की मृत्यु होने पर अष्टमी तिथि और माता की मृत्यु होने पर नवमी तिथि तय की गई है। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु किसी दुर्घटना में हुई तो उसका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि पर करना चाहिए।
-आर्थिक कारण या अन्य कारणों से यदि कोई व्यक्ति बड़ा श्राद्ध नहीं कर सकता लेकिन अपने पितरों की शांति के लिए वास्तव में कुछ करना चाहता है, तो उसे पूर्ण श्रद्धा भाव से अपने सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध अन्न, साग-पात-फल और जो संभव हो सके उतनी दक्षिणा किसी ब्राह्मण को आदर भाव से दे देनी चाहिए।
– श्राद्ध में गाय का दूध और उन से बनी हुई वस्तुएं जौ, धान, तिल, गेहूं, मूंग, आम, अनार, खीर नारियल, अंगूर, चिरौंजी, मिठाई, मटर और सरसों या तिल का तेल प्रयोग करना चाहिए।
-पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने से तात्पर्य उन्हें जल देना है। सभी तर्पण की सामग्री लेकर दक्षिण की ओर मुख करके बैठ जाएं। अपने हाथ में जल, कुशा, अक्षत, पुष्प और काले तिल लेकर दोनों हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें। अपने पितरों का नाम लेते हुए आप कहें कृपया यहां आकर मेरे दिए जल को आप ग्रहण करें। जल पृथ्वी पर 5-7 या 11 बार अंजलि से गिराएं।
– आचार्य को भोजन कराने से पूर्व गाय, कुत्ते, चींटी और देवताओं के नाम की पूड़ी निकालनी चाहिए। यदि किसी परिस्थिति में यह भी संभव न हो तो 7-8 मुट्ठी तिल, जल सहित किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर देने चाहिए। इससे भी श्राद्ध का पुण्य प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म में गाय को विशेष महत्व दिया गया है। किसी गाय को भरपेट घास खिलाने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं।
पित्तरपक्ष श्राद्ध कर्म की तिथियां
10 सितंबर को पूर्णिमा का श्राद्ध/ प्रतिपदा का श्राद्ध
11 सितंबर द्वितीया का श्राद्ध
12 सितंबर तृतीया का श्राद्ध
13 सितंबर चतुर्थी का श्राद्ध
14 सितंबर पंचमी का श्राद्ध
15 सितंबर षष्ठी का श्राद्ध
16 सितंबर सप्तमी का श्राद्ध
18 सितंबर अष्टमी का श्राद्ध
19 सितंबर नवमी श्राद्ध
20 सितंबर दशमी का श्राद्ध
21 सितंबर एकादशी का श्राद्ध
22 सितंबर द्वादशी/सन्यासियों का श्राद्ध
23 सितंबर त्रयोदशी का श्राद्ध
24 सितंबर चतुर्दशी का श्राद्ध
25 सितंबर अमावस्या का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या, का श्राद्ध, महालय श्राद्ध