शिव जी की पंसदीदा चीजो में से एक है भस्म। अधिकांश शिववलयों में भस्म चढ़ाई जाती है। घर मे किये जाने वाले रुद्राभिषेक में भी भस्म का प्रयोग होता है। लेकिन पंडितों के अनुसान भस्म कभी महिलाओं को नही चढ़ाना चाहिए और न ही इसे घर मे रखना चाहिए। आइये सावन के चौथे सोमवार को जाने क्यों पसंद है शिव जी को भस्म ?
जब माता सती अपने पति शिव के अपमान के चलते अपन पिता दक्ष के यज्ञ में कूदकर जलकर मर गई तो इस घटना से शिवजी बहुत आहत हो गए। उन्होंने राजा दक्ष का नाश करने के बाद उस जलती अग्नि से अपनी पत्नी सती के शव को निकाला और वह क्रोधित, दुखी एवं बैचेन होकर प्रलाप करते हुए धरती पर भ्रमण करने लगे। जहां जहां माता के शरीर के अंग गिरे वहां वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। उनके इस दुख के कारण सृष्टि खतरे में पड़ गई जिसके चलते भगवान विष्णु ने उनके शरीर को अपनी माया से भस्म में परिवर्तित कर दिया। फिर भी शिव का प्रलाप और दुख नहीं मिटा तो शिव ने अपनी प्रिया की निशानी के तौर पर उस भस्म को अपने शरीर पर मल लिया। कहते हैं इसीलिए शिवजी भस्म धारण करते हैं, लेकिन इसके और भी कई कारण हैं।
किसी भी पदार्थ का अंतिम रूप भस्म होता है। किसे भी जलाओ तो वह भस्म रूप में एक जैसा ही होगा। मिट्टी को भी जलाओ तो वह भस्म रूप में होगी। सभी का अंतिम स्वरूप भस्म ही है। भस्म इस बात का संकेत भी है कि सृष्टि नश्वर है। शिवजी भस्म धारण करके सभी को यही बताना चाहते हैं कि इस देह का अंतिम सत्य यही है।
क्या आपको पता है भस्म आरती के नियम :
महाकाल की 6 बार आरती होती हैं, जिसमें सबसे खास मानी जाती है भस्म आरती। भस्म आरती यहां भोर में 4 बजे होती है। कालों के काल महाकाल के यहां प्रतिदिन अलसुबह भस्म आरती होती है। इस आरती की खासियत यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। इस आरती में शामिल होने के लिए पहले से बुकिंग की जाती है।
सबसे पहले भस्म आरती, फिर दूसरी आरती में भगवान शिव घटा टोप स्वरूप दिया जाता है। तीसरी आरती में शिवलिंग को हनुमान जी का रूप दिया जाता है। चौथी आरती में भगवान शिव का शेषनाग अवतार देखने को मिलता है। पांचवी में शिव भगवान को दुल्हे का रूप दिया जाता है और छठी आरती शयन आरती होती है। इसमें शिव खुद के स्वरूप में होते हैं।
इस आरती में महिलाओं के लिए साड़ी पहनना जरूरी है। जिस वक्त शिवलिंग पर भस्म चढ़ती है उस वक्त महिलाओं को घूंघट करने को कहा जाता है। मान्यता है कि उस वक्त भगवान शिव निराकार स्वरूप में होते हैं और इस रूप के दर्शन महिलाएं नहीं कर सकती। पुरुषों को भी इस आरती को देखने के लिए केवल धोती पहननी होती है। वह भी साफ-स्वच्छ और सूती होनी चाहिए। पुरुष इस आरती को केवल देख सकते हैं और करने का अधिकार केवल यहां के पुजारियों को होता है।
क्यों पड़ा महाकालेश्वर नाम
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार दूषण नाम के एक राक्षस की वजह से अवंतिका में आतंक था। नगरवासियों के प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसको भस्म कर दिया और उसकी राख से ही अपना श्रृंगार किया। तत्पश्चात गाव वालों के आग्रह पर शिवजी वहीं महाकाल के रूप में बस गए। इसी वजह से इस मंदिर का नाम महाकालेश्वर रख दिया गया और शिवलिंग की भस्म से आरती की जाने लगी।