24 अप्रेल 2017 को सुकमा जिले के बुरकापाल में हुए नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे। इस मामले के 122 आरोपियों को विशेष न्यायालय ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की 74वीं वाहिनी की सी, डी कंपनी एवं जिला पुलिस बल की कुल 72 संयुक्त पार्टी दोरनापाल से जगरगुंडा मार्ग पर सड़क निर्माण कार्य की सुरक्षा के लिए नियमित सर्चिंग आपरेशन में निकली थी। जब जवान निर्माणाधीन पुलिया के करीब विश्राम कर रहे थे तभी नक्सलियों ने हमला कर दिया था। इस हमले में 25 जवान
अभय कुमार, बन्नाराम, केके दास, राममेहर, अनुप कर्मकार, सुरेन्द्र कुमार, रघुवीर सिंह, रामेश्वर लाल, के. पी. सिंह, नरेश कुमार, संजय कुमार, एन. मनोज कुमार, अभय मिश्रा, एन. थुरू मुर्गन, रंजीत कुमार, आशीष कुमार सिहं, सौरभ कुमार, बदमा नाभम, नरेश यादव, केके पांडे, एनके सेन्थील, बनमाली राम, एनपी सोनकर, पी. अलागपूण्डी, विनय चन्द्र बर्मन शहीद हो गए थे। जवानों पर अत्याधुनिक हथियार के साथ फायरिंग कर उन्नत आग्नेयास्त्र एवं ग्रेनेड / आईईडी का प्रयोग किया गया था।
इस मामले में कुल 122 अभियुक्त गिरफ्तार किए गए थे जिनमें से एक की मृत्यु हो गई। इस मामले में पुलिस ने कुल 15 लोगों को साक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत किया। जिनके बयान दर्ज नहीं करना पाया गया। इन गवाहों ने आरोपियों को पहचानने और उनकी संलिप्तता से इंकार कर दिया। गवाहों ने यह भी कहा कि उन्होंने इस संबंध में कोई बयान दर्ज नहीं करवाया है।
न्यायालय ने कहा अभियुक्तगण की उपस्थिति एवं उनकी पहचान ही विचारण हेतु मुख्य प्रश्न रहा है । किन्तु इस प्रकरण में उपलब्ध किसी भी अभियोजन साक्षियों के द्वारा घटना के समय मौके पर इन अभियुक्तगण की उपस्थिति एवं पहचान के संबंध में कोई कथन नहीं किया गया है। इन भियुक्तगण के आधिपत्य से कोई घातक या जाना प्रमाणित नहीं हुआ है। इन भियुक्तगण के आधिपत्य से कोई घातक आयुध एवं आग्नेय शस्त्र जप्त किया जाना प्रमाणित नहीं हुआ है। इस तरह अभियोजन द्वारा जिन साक्षियों का कथन न्यायालय में कराया गया है, उनके साक्ष्य के माध्यम से इन अभियुक्तगण के विरूद्ध किसी भी आरोप को प्रमाणित नहीं किया जा सका है।
इस प्रकार यहां प्रकरण में आए साक्ष्य अभियोजन की ओर से इन अभियुक्तगण के विरूद्ध आरोप के संबंध में जिन साक्षियों का कथन कराया गया है, उनमें से किसी के भी कथन में ऐसा कोई तथ्य विश्वास किए जाने योग्य नहीं आया है, जिससे यह प्रमाणित हो कि, अभियुक्तगण प्रतिबंधित नक्सली संगठन के सक्रिय सदस्य हैं तथा घटना में संलिप्त रहे हैं।
इन अभियुक्तगण के आधिपत्य से कोई घातक आयुध एवं आग्नेय शस्त्र की जप्ती होना भी प्रमाणित नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में इन अभियुक्तगण के खिलाफ आरोपित अपराध में कोई भी आरोप प्रमाणित नहीं होना पाया जाता हैं। अतः उपरोक्त साक्ष्य विवेचना से स्पष्ट हैं कि, अभियोजन, इन अभियुक्तगण के विरुद्ध आरोपित आरोप युक्तियुक्त रूप से हर संदेह से परे प्रमाणित करने में असफल रहा। फलतः इन अभियुक्तगण को धारा 148, 302/149, 506 भा. दं. सं. 1860, धारा 25 (1) (1-ख) (क), 27 (1) आयुध अधिनियम 1959 तथा धारा 38(2), 39 (2) विधि विरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 1967 के आरोप से मुक्त किया जाता है।
धारा 38(2), 39 (2) विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 1967 के आरोप से दोषमुक्त कर स्वतत्रं किया जाता है। अभियुक्तगण के द्वारा धारा 437 (ए) दं.प्र.सं. के तहत निष्पादित बंधक पत्र, इस निर्णय दिनांक से 06 माह तक प्रवृत्त रहेगा। अभियुक्तगण, न्यायिक अभिरक्षा में निरूद्ध हैं। उनके द्वारा इस प्रकरण में अभिरक्षा में बिताई गई अवधि के संबंध में निरोध अवधि तालिका, धारा 428 दं.प्र.सं. के अतंर्गत तैयार किया गया।