चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा अपनी वेबसाइट पर जारी किया। वेबसाइट पर 763 पेजों की दो सूची अपलोड की गई है। एक सूची में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है। इसके मुताबिक भाजपा सबसे ज्यादा चंदा लेने वाली पार्टी है। 12 अप्रैल 2019 से 11 जनवरी 2024 तक भाजपा को सबसे ज्यादा 6,060 करोड़ रुपये मिले हैं। इस सूची में दूसरे नंबर पर तृणमूल कांग्रेस को 1,609 करोड़ और तीसरे पर कांग्रेस पार्टी को 1,421 करोड़ मिले है। चुनावी बॉन्ड इनकैश कराने वाली पार्टियों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, AIADMK, बीआरएस, शिवसेना, TDP, YSR कांग्रेस, डीएमके, JDS, एनसीपी, जेडीयू और राजद भी शामिल हैं।
भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन दिनेश कुमार ने 13 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट फाइल की थी। उन्होंने इसमें कहा कि हमने चुनाव आयोग को पेन ड्राइव में दो फाइलें दी हैं। एक फाइल में बॉन्ड खरीदने वालों का विवरण है। इसमें बॉन्ड खरीदने की तारीख और रकम का जिक्र है। दूसरी फाइल में बॉन्ड इनकैश करने वाले राजनीतिक दलों की जानकारी है। लिफाफे में 2 PDF फाइल भी हैं। ये फाइल पेन ड्राइव में भी रखी गई हैं, इन्हें खोलने के लिए जो पासवर्ड है, वो भी लिफाफे में दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट को दिया गया डेटा 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच खरीदे और इनकैश कराए गए बॉन्ड का है।
स्टेट बैंक के मुताबिक, 1 अप्रैल से 11 अप्रैल, 2019 तक 3 हजार 346 चुनावी बॉन्ड खरीदे गए थे। इनमें 1 हजार 609 इनकैश कराए गए। 1 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच कुल 22 हजार 217 बॉन्ड खरीदे गए। 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 तक कुल खरीदे गए चुनावी बॉन्ड की संख्या 18,871 थी। इनमें 20 हजार 421 बॉन्ड इनकैश कराए गए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 15 मार्च तक डेटा सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। इससे पहले भारतीय स्टेट बैंक ने 12 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट में डेटा सबमिट किया था। स्टेट बैंक ने चुनाव आयोग को बॉन्ड से जुड़ी जानकारी दी थी। दोनों सूची में बॉन्ड खरीदने वालों और इन्हें इनकैश कराने वालों के तो नाम हैं, लेकिन यह पता नहीं चलता कि किसने यह पैसा किस पार्टी को दिया?
इस मामले में याचिका लगाने वाले ADR के वकील प्रशांत भूषण ने सवाल उठाया कि एसबीआई ने वह यूनिक कोड नहीं बताया, जिससे पता चलता कि किसने-किसे चंदा दिया। ऐसे में कोड की जानकारी के लिए वे फिर सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। वहीं, कांग्रेस ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड के डेटा पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने कहा कि दानदाताओं और इसे लेने वालों के आंकड़े में अंतर है। दानदाताओं में 18,871 एंट्री है, जबकि लेने वालों में 20,421 की एंट्री है। कांग्रेस ने यह भी पूछा कि यह योजना 2017 में शुरू हुई थी तो इसमें अप्रैल 2019 से ही डेटा क्यों है? उधर, आयोग का कहना है कि उसे यह जानकारी स्टेट बैंक से ऐसी ही मिली है। 2019 से 2024 के बीच 1334 कंपनियों-लोगों ने कुल 16,518 करोड़ रु. के बॉन्ड खरीदे। 27 दलों ने भुनाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को कहा कि 11 मार्च के फैसले में स्पष्ट कहा गया था कि बॉन्ड की पूरी डिटेल खरीदी की तारीख, खरीदार का नाम, कैटेगरी समेत दी जाए, लेकिन स्टेट बैंक ने यूनीक अल्फा न्यूमेरिक नंबर्स का खुलासा नहीं किया है। कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि चुनाव आयोग से मिले डेटा को 16 मार्च की शाम 5 बजे तक स्कैन और डिजिटलाइज किया जाए। प्रोसेस पूरी होने के बाद ओरिजनल कॉपी आयोग को लौटा दी जाए। एक कॉपी कोर्ट में रखी जाए और फिर इस डेटा को चुनाव आयोग की वेबसाइट पर 17 मार्च तक अपलोड किया जाए। साथ ही स्टेट बैंक 18 मार्च तक नंबर की जानकारी नहीं दिए जाने का जवाब दे।
इस पूरे विवाद के बीच सबसे बड़ा चुनावी चंदा फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेस ने दिया है। कंपनी सिक्किम, नगालैंड और पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश में लॉटरी के टिकट बेचती है। इसे लॉटरी किंग मार्टिन सेंटियागो चलाते हैं। उन्होंने 1,368 करोड़ रुपये का चंदा 21 अक्टूबर 2020 से जनवरी 24 के बीच दिया है। सेंटियागो मार्टिन के बड़े बेटे चार्ल्स जोस ने 2015 में भाजपा जॉइन की थी। कंपनी 10 साल से ED और IT डिपार्टमेंट की रडार पर है। दिसंबर 2021 में ED ने कंपनी की 19.6 करोड़ की प्रॉपर्टी अटैच की थी। 2019 में IT ने मार्टिन के देशभर के 70 ठिकानों पर छापा भी मारा था। कंपनी के खिलाफ लॉटरी रेगुलेशन एक्ट 1998 के तहत और आईपीसी के तहत कई मामले दर्ज हैं।