
मानसून के दस्तक के साथ सूबे की न्यायधानी बिलासपुर की सफाई अधोसंरचना कटघरे में है।वॉटर लॉगिंग की समस्या का स्थाई समाधान अब तक नहीं ढूंढा जा सका है। अस्थाई प्रबंधन में भी निगम की तैयारियां फेल नज़र आ रही हैं। भारी भरकम बजट वाले नगर निगम में सफाई अधोसंरचना का ये हाल कई सवाल खड़े कर रहा है।
बिलासपुर प्रदेश का दूसरा बड़ा शहर और महत्वपूर्ण नगर निगम है। अकेले बिलासपुर नगर निगम का बजट लगभग एक हजार करोड़ का है, जिसमें शहर के अधोसंरचना विकास से लेकर साफ, सफाई, बिजली, पानी जैसे तमाम व्यवस्थाओं पर काम किया जाता है। यह जानकर हैरत होगा कि इतने भारी भरकम बजट के बाद भी नगर निगम बिलासपुर की सफाई अधोसंरचना कटघरे में है। दरअसल, बिलासपुर नगर निगम अब तक शहर में वाटर लॉगिंग की समस्या का स्थाई समाधान नहीं ढूंढ पाया है। इसके लिए हर वर्ष करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। नाले नाली की साफ सफाई हो या फिर बने हुए तोड़कर फिर नया निर्माण कार्य। तमाम कवायदों में केवल करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। इसके बावजूद समस्या का स्थाई समाधान अब तक नहीं निकल पाया है। पुराना बस स्टैंड, कश्यप कॉलोनी, श्रीकांत वर्मा मार्ग, विद्या विनोबा नगर का क्षेत्र इसका बड़ा उदाहरण है।
बिलासपुर में ड्रेनेज और पानी निकासी के लिए 137 नाले नालियों का सिस्टम काम करता है। पूरे शहर का ड्रेनेज और बारिश का पानी इन नाले नालियों के जरिए बाहर जाता है। ये नाले नालियां पूरे शहर को कवर करती हैं। इनमें गोकने नाला, ज्वाली नाला जैसे कई बड़े नाले हैं जो आधे से ज्यादा शहर के ड्रेनेज सिस्टम के लिए काम करती हैं। लेकिन निगम, समय के साथ इस सिस्टम को भी दुरुस्त रखने व और बेहतर करने में अब तक फेल साबित रहा है, या ये कहें की बने हुए सिस्टम को बिगाड़ने का काम उल्टे निगम ने किया है। शहर के अधिकांश नालों को पैक कर उसके ऊपर कनेक्टिंग रोड बना दिया गया है। इससे नालों का प्रॉपर सफाई और पानी का फ्लो बाधित हो रहा है। यही हाल नालियों का भी है, अधिकांश नालियों को खुद निगम ने या तो स्मार्ट रोड के नामपर फुटपाथ बनाकर पैक कर दिया है। या फिर उन नालियों पर लोगों का कब्जा है। जहां नालियां खुली हैं वहां लोग सीएनडी वेस्ट डाल रहे हैं। ऐसे में नालियां भी जाम हैं। निगम जरूर समय- समय पर नाले नालियों की सफाई के साथ नालियों में कचरा डालने व कब्जा करने वालों पर जुर्माना व कार्रवाई का दावा करता है। लेकिन वाटर लॉगिंग के साथ निगम का ये सिस्टम भी फेल हो जाता है। नालियों का मलबा सड़कों में आ जाता है और पूरा सिस्टम ध्वस्त हो जाता है। गोलबाजार, सरकंडा, तोरवा, उसलापुर क्षेत्र में वॉटर लॉगिंग की समस्या इसका बड़ा उदाहरण है।
सफाई अधोसंरचना के इस हकीकत के बीच निगम के अपने दावे हैं। नाले नालियों का चौड़ीकरण, कुछ नए नाले नालियों का निर्माण और साफ सफाई को निगम अपनी मानसून की तैयारी और वाटर लॉगिन की समस्या का समाधान मान रहा है। निगम अधिकारियों की माने तो वे इसके स्थाई समाधान की तरफ बढ़ रहे हैं। इसके लिए प्लानिंग के साथ शहर के आउटर और अंदर नालों का निर्माण किया जा रहा है, इनमें ऐसे नाले जिनपर ज्यादा फ्लो रहता है उन नालों का भी चौड़ीकरण व विस्तार किया जा रहा है। इसके अलावा प्रॉपर साफ़ सफाई के साथ नालियों का फ्लो बने रहे इसपर काम किया जा रहा है।
बहरहाल, इस रिपोर्ट में आपने देखा कि सूबे के दूसरे बड़े शहर बिलासपुर नगर निगम में सफाई अधोसंरचना का क्या हाल है। भारी भरकम बजट होने के बाद भी अब तक वॉटर लॉगिंग की समस्या का स्थाई समाधान नहीं निकल सका है। आज भी आधे अधूरे बिना कोई ठोस प्लानिंग, अस्थाई समाधान के भरोसे ही बिलासपुर की सफाई अधोसंरचना संचालित है।