रायपुर, 27 फरवरी 2025:छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की ऐतिहासिक पहल से महाकुंभ 2025 में छत्तीसगढ़ की जनता को विशेष अवसर मिला। प्रयागराज के सेक्टर 6 में साढ़े चार एकड़ में बने छत्तीसगढ़ पैवेलियन में 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने निःशुल्क ठहरने और भोजन की सुविधा का लाभ उठाया।
मुख्यमंत्री साय ने पहले ही अपने संबोधनों में राज्य के श्रद्धालुओं को भरोसा दिलाया था कि महाकुंभ में उनके ठहरने और खाने की चिंता सरकार करेगी। इसके लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बातचीत कर कुंभ मेला क्षेत्र में छत्तीसगढ़ पैवेलियन का निर्माण कराया गया।
45 दिनों तक चले महाकुंभ में छत्तीसगढ़ के श्रद्धालुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई और सरकार की इस पहल की सराहना की। छत्तीसगढ़ पैवेलियन केवल राज्य के श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं, बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना रहा।
छत्तीसगढ़ पैवेलियन में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का जलवा
पैवेलियन में छत्तीसगढ़ के कलाकारों ने स्थानीय संस्कृति की झलक दिखाई। अन्य राज्यों के पैवेलियन जहां रात 8 बजे बंद हो जाते थे, वहीं छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक कार्यक्रम रात 10 बजे तक चलता रहा।
बस्तर के गौर मुकुट से सजे प्रवेश द्वार से लेकर छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा तक, सब कुछ राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करता था। प्रदर्शनी में छत्तीसगढ़ की चार ईष्ट देवियों के दर्शन, सिरपुर, चित्रकोट वाटरफॉल, नया रायपुर जैसे पर्यटन स्थलों की जानकारी भी लोगों को दी गई।
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तकनीक के प्रयोग से बढ़ा आकर्षण
पैवेलियन में 360 डिग्री वीडियो वाले इमर्सिव डोम और वर्चुअल रियलिटी के जरिए छत्तीसगढ़ को जानने का मौका मिला। ग्रामीण संस्कृति, कला, आभूषण, नृत्य, और पशु-पक्षियों की झलक भी दिखाई गई, जिसने मीडिया का भी ध्यान आकर्षित किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ को ‘एकता का महाकुंभ’ बताया और छत्तीसगढ़ पैवेलियन ने इसे साकार किया। यहां बिना किसी भेदभाव के सभी को निःशुल्क भोजन और आवास की सुविधा दी गई।
मुख्यमंत्री साय ने योगी आदित्यनाथ को दी बधाई
महाकुंभ के समापन पर मुख्यमंत्री साय ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को महाकुंभ के सफल आयोजन और छत्तीसगढ़ को साढ़े चार एकड़ जमीन उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद दिया।
छत्तीसगढ़ पैवेलियन के माध्यम से राज्य की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का भव्य प्रदर्शन हुआ, जिसने राज्य की तीन करोड़ जनता को गौरव का अनुभव कराया। यह आयोजन न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र यात्रा बना, बल्कि छत्तीसगढ़ की आध्यात्मिक धरोहर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई।
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