विधायकों की बगावत के कारण राजनीतिक संकट में घिरे शिवसेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे परिवार समेत सरकारी बंगले ‘वर्षा” से अपने निजी आवास ‘मातोश्री” में चले गए। वहां से निकलने से पहले उद्धव ने वहां मौजूद विधायकों से भावुक होकर कहा कि जो जाना चाहे, जा सकता है। इससे पहले उद्धव ने शिवसैनिकों से भावनात्मक अपील की और कहा कि वह न सिर्फ मुख्यमंत्री पद, बल्कि शिवसेना प्रमुख का पद भी छोड़ने को तैयार हैं, लेकिन हमारा कोई शिवसैनिक खुद मेरे सामने आकर मांगे तो। मेरे मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद अगर कोई शिवसैनिक मुख्यमंत्री बनता है तो मुझे खुशी होगी। उधर, पार्टी प्रवक्ता संजय राउत ने स्पष्ट किया कि उद्धव मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे। अवसर मिला तो वह विधानसभा में बहुमत सिद्ध करके दिखाएंगे।
राजनीतिक उठापटक के बीच राउत ने स्पष्ट किया कि किसी ने भी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पद से इस्तीफा देने की सलाह नहीं दी है। राउत ने राकांपा अध्यक्ष शरद पवार, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ और बालासाहब थोराट द्वारा उद्धव ठाकरे को दिए गए समर्थन पर उनका आभार भी व्यक्त किया। राउत ने कहा कि मुख्यमंत्री को पद का मोह नहीं है। इसलिए वह अब अपने निजी आवास ‘मातोश्री” जा रहे हैं।
इस बयान के कुछ घंटे पहले राउत ने खुद ही ट्वीट किया था कि महाराष्ट्र का राजनीतिक घटनाक्रम विधानसभा भंग करने की ओर बढ़ रहा है। राउत का यह ट्वीट और उद्धव का सरकारी आवास छोड़ना इस बात का संकेत है कि शिवसेना को सत्ता जाने का आभास हो गया है। लेकिन वह इस्तीफा देकर सत्ता नहीं छोड़ना चाहते। साथ ही वह विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने का मौका भी नहीं छोड़ना चाहते। यानी वह संघर्ष करते हुए दिखना चाहते हैं। राउत ने एक ट्वीट में इसका संकेत भी दिया, उन्होंने लिखा, ‘हां, संघर्ष करेंगे।” उन्होंने कहा कि हम लड़ने वाले लोग हैं। अंतिम विजय सत्य की ही होगी।
शिवसेना की बदली रणनीति का कारण विधानसभा उपाध्यक्ष राकांपा का होना है। फिलहाल विधानसभा में अध्यक्ष का पद रिक्त है। महाविकास अघाड़ी (एमवीए) मान रहा है कि यदि विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने की नौबत आई तो उपाध्यक्ष कई तकनीकी कारण बताकर भाजपा और एकनाथ शिंदे के मंसूबों पर पानी फेर सकते हैं या नई सरकार बनने में अधिक से अधिक विलंब कर सकते हैं। गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे के साथ अभी भी शिवसेना के इतने विधायक नजर नहीं आ रहे हैं कि वे दलबदल कानून का दायरे से बाहर हो गए हों और अपने समर्थक विधायकों का एक अलग गुट बनाकर उसे ही असली शिवसेना साबित कर सकें।
एकनाथ शिंदे के साथ 20 जून की रात सूरत गए विधायकों में से कुछ वापस उद्धव खेमे में लौट चुके हैं, इसलिए भी उद्धव को उम्मीद है कि अगर उनकी भावनात्मक अपील काम कर गई व शिंदे के खेमे में गए कुछ और विधायक वापस आ सके तो शिंदे को दलबदल कानून का दायरा तोड़ने में मुश्किल हो सकती है।
राजनीतिक संकट शुरू होने के बाद पहली बार फेसबुक लाइव के जरिये प्रदेश की जनता से भावनात्मक अपील में उद्धव ने कहा कि पद लेने के पीछे मेरा कोई स्वार्थ नहीं है। राजनीति कोई भी मोड़ ले सकती है। मुझे आश्चर्य है कि कांग्रेस और राकांपा में से कोई कहता कि मुझे मुख्यमंत्री पद पर आप नहीं चाहिए, तो मैं समझ सकता था। लेकिन बुधवार को कमलनाथ और शरद पवार ने मुझे फोन किया और कहा कि हम आपके साथ हैं। दूसरी ओर मेरे ही लोग मुझे मुख्यमंत्री पद पर नहीं चाहते, तो मैं क्या कर सकता हूं। उन्होंने बगावत का बिगुल बजा रहे एकनाथ शिंदे का नाम लिए बिना कहा कि यही बात आप मेरे सामने आकर कहते तो क्या हर्ज था। इसके लिए सूरत जाने की क्या जरूरत थी? यदि आप चाहते हैं कि मैं मुख्यमंत्री न रहूं तो ठीक है। इनमें से एक भी विधायक मेरे सामने आकर कहे तो मैं आज ही इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं। मुझे जबरन कुर्सी पर बैठने का कोई मोह नहीं है, लेकिन आपको सामने आकर कहना होगा। मेरे मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद अगर कोई शिवसैनिक मुख्यमंत्री बनता है तो मुझे खुशी होगी।