शिवसेना के बागी विधायकों ने एकनाथ शिंदे को शिवसेना विधायक दल का नेता चुन लिया है। इस आशय का एक पत्र महाराष्ट्र के राज्यपाल, विधानसभा के उपसभापति और विधानसभा के सचिव को भेजा गया है। इस पत्र पर 34 विधायकों के हस्ताक्षर हैं। इनमें चार निर्दलीय विधायक भी शामिल हैं। शिंदे 20 जून को हुए विधान परिषद चुनाव के तुरंत बाद करीब एक दर्जन शिवसेना विधायकों को साथ लेकर सूरत (गुजरात) चले गए थे। 21 जून की देर रात वह 34 विधायकों के साथ गुवाहाटी पहुंच गए हैं। सूचना है कि कुछ और विधायक भी गुवाहाटी पहुंच रहे हैं।
बागी विधायकों द्वारा पारित किए गए प्रस्ताव में कहा गया है कि एकनाथ शिंदे को 31 अक्टूबर, 2019 को शिवसेना विधायक दल का नेता चुना गया था। वही आज भी पार्टी विधायक दल के नेता हैैं। दूसरा प्रस्ताव मुख्य सचेतक (चीफ व्हिप) को लेकर भी पास किया गया। जिसमें पहले से चले रहे शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु को तत्काल प्रभाव से हटाकर विधायक भरत गोगावले को मुख्य सचेतक नियुक्त किया गया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि शिवसेना पिछले दो वर्षों में अपनी मूल विचारधारा से भटक गई है।
प्रस्ताव में अनिल देशमुख और नवाब मलिक का उल्लेख करते हुए राज्य में बढ़े भ्रष्टाचार पर भी चिंता व्यक्त की गई है। इसमें कहा गया है कि शिवसेना के नेतृत्व वाली ढाई साल की सरकार का लाभ सिर्फ महाविकास अघाड़ी के बाकी दो दलों को मिलता रहा। शिववसैनिकों की उपेक्षा होती रही। यही नहीं, हमारे पार्टी कैडर को परेशान भी किया जाता रहा।
बता दें कि शिंदे के इस आरोप के पीछे स्वयं उन्हें परेशान किए जाने का इशारा भी शामिल है। शिंदे को उद्धव सरकार में नगर विकास मंत्री का पद दिया गया था। लेकिन उनका कोई भी निर्णय राज्य सरकार में मंत्री एवं उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे की अनुमति के बिना अमल में नहीं लाया जाता था। सरकार में शिवसेना कैडर की उपेक्षा के पीछे शिवसेना विधायकों को पर्याप्त फंड नहीं मिलने का आरोप भी शामिल है। जबकि राकांपा विधायकों को यह कमी कभी नहीं खली।शिंदे का कहना है कि ऐसी स्थिति में पार्टी को बचाने के लिए कांग्रेस-राकांपा के साथ बने गठबंधन से अलग होना जरूरी हो गया था।
विचारधारा के आधार पर वर्तमान उद्धव सरकार को घेरते हुए प्रस्ताव में कहा गया है कि 2019 का विधानसभा चुनाव हमने भाजपा के साथ गठबंधन करके लड़ा था। मतदाताओं ने उस समय शिवसेना-भाजपा गठबंधन को अपना आशीर्वाद दिया था। लेकिन परिणाम आने के बाद शिवसेना ने भाजपा के साथ अपना गठबंधन तोड़कर विरोधी दलों के साथ हाथ मिला लिया। हमारे नेताओं के इस कृत्य का संदेश मतदाताओं और हमारे कैडर के बीच बहुत बुरा गया, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने किसी की एक नहीं सुनी। पिछले ढाई वर्षो से बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण हम सभी विधायकों पर अपने मतदाताओं का बड़ा दबाव पड़ रहा था। इसलिए महाराष्ट्र के हित में वर्तमान एमवीए गठबंधन से हटना जरूरी हो गया था।