पिथौरा। विकासखण्ड में एक ऐसा सरकारी मिडिल स्कूल भी है जहां बच्चे अंग्रेजी में बात करते हैं। इस स्कूल को देखने से यह एक महंगे निजी स्कूल की तरह प्रतीत होता है। इस स्कूल ने निजी महंगे स्कूल एवं दिल्ली के केजरीवाल मॉडल सरकारी स्कूल को भी पीछे छोड़ दिया है। कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति की जो चाह होती है इंसान वहां का रास्ता तलाश ही लेता है। कुछ ऐसा ही हुआ है। पिथौरा विकासखण्ड के ग्राम जबलपुर के शासकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में। इस विद्यालय के आधे से अधिक बच्चे अब अंग्रेजी में पारंगत हो गए हैं। इनमें से कुछ तो फर्राटे से अंग्रेजी में बात भी कर सकते हंै। बाकी बच्चे अंग्रेजी में ही प्रश्नोत्तर भी कर लेते हैं।
कुल 150 की दर्ज संख्या में कोई 70 से 80 बच्चे यहां के अंग्रेजी कक्षाओ में आते हैं। इनमे करीब 20 से 22 बच्चे ऐसे हैं जो अंग्रेजी में फर्ऱाटे से बात कर सकते हैं। शेष बच्चे अभी अंग्रेजी में प्रश्न उत्तर आसानी से कर रहे हंै। यहां के शिक्षकों ने यह उम्मीद जताई है कि आगामी दो वर्षों में स्कूल के सभी बच्चे न सिर्फ अंग्रेजी में बोलचाल कर पाएंगे बल्कि वे नवोदय एवं सैनिक स्कूल जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं को भी आसानी से निकालने की स्थिति में होंगे।
अकेले शिक्षक ने किया कमाल
जबलपुर के मिडिल स्कूल में पदस्थ शिक्षक अश्वनी प्रधान इस सम्बंध में बताते है कि वे स्वयम एम एस सी है और विगत 2018 से वे इसी स्कूल में पदस्थ हैं। पहले स्कूल के पालक हिंदी, अंग्रेजी एवं संस्कृत सभी भाषा में पढ़ाई चाहते थे। परन्तु विगत वर्षों में अंग्रेजी का एक अलग ही स्वरूप सामने आया।जिससे ग्राम में ही एक निजी अंग्रेजी माध्यम स्कूल खुल गया। जिसमें हिंदी माध्यम के बच्चों को उनके पालक अंग्रेजी माध्यम में पढऩे वहां भर्ती करने लगे। पालकों का अंग्रेजी के प्रति बढ़ते लगाव को देखते हुए अश्वनी ने अपने एक सहयोगी शिक्षक उत्कल प्रधान एवम अन्य शिक्षकों के साथ मिल कर स्कूल समय से अलग इंग्लिश स्पोकन क्लास लगाने का निर्णय लिया। इस निर्णय को अमल लाया गया तो स्कूल के 150 में से करीब 80 बच्चे अंग्रेजी क्लास में आने लगे। एक साल की मेहनत ने अपना रंग दिखाया और एक अच्छे महंगे अंग्रेजी स्कूल से भी आगे बढ़ते हुए इस शिक्षक ने अंग्रेजी सीखने के इच्छुक बच्चों को हिंदी के साथ अंग्रेजी में भी ऐसा पारंगत कर दिया कि इन बच्चों से बात करने वालो को विश्वास ही नही होता कि ये एक ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूल के बच्चे है।
इंटेक्टिव पेनल बोर्ड से होती है पढ़ाई
इस स्कूल की एक खास पहचान यह भी है कि छत्तीसगढ़ का यह पहला ऐसा मिडिल स्कूल बन गया है जहां इंटेक्टिव बोर्ड से पढ़ाई होती है। अश्वनी के अनुसार इस बोर्ड की कीमत 1 लाख 10 हजार है। इसे कुछ ग्रामीणों के सहयोग एवं इस स्कूल के सभी शिक्षकों के वेतन से एक फीसदी प्रतिमाह के सहयोग से खरीदा गया। इस स्कूल के सभी शिक्षक प्रतिमाह अपने वेतन से स्कूल विकास हेतु एक फीसदी राशि अलग से जमा करते है और उन्हें स्कूल के विकास हेतु खर्च करते है। अश्वनी के साथ इस विद्यालय के उत्कल प्रधान भी उनके काम मे कंधे से कंधा मिला कर चलते हैं।
शानदार फुलवारी एवं गार्डन में स्कूल
इस स्कूल को चारों ओर फुलवारी एवं सुंदर दिखने वाले पेड़ पौधों से इस तरह सजाया गया है कि कोई भी पालक इस ओर सहज ही आकर्षित हो जाता है। इस स्कूल को हरे भरे पेड़ पौधों से हरियाली लेकर खूबसूरत बनाने का काम भी इस स्कूल का स्टाफ बखूबी कर रहा है। उत्कल प्रधान बताते हैं कि इस वर्ष से स्कूल की खाली जमीन पर सब्जी भी लगाए हैं। अब ताजी सब्जी मध्यान्ह भोजन में उपयोग की जाएगी।
अंग्रेजी स्कूल के बच्चों का प्रवेश
इस स्कूल की सुंदरता एवं बच्चों की पढ़ाई देख कर अब समीप के निजी स्कूलों में अध्ययन रत बच्चों के पालक भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से निकाल कर इस सरकारी स्कूल में भर्ती करवा रहे हैं।
मॉडल स्कूल बना जबलपुर स्कूल, अन्य शिक्षकों को भी सबक लेना चाहिए
ग्रामीण क्षेत्र के इस सरकारी स्कूल को यहां के शिक्षक अश्वनी प्रधान ने अपने शिक्षक साथियों के साथ मिलकर सरकार के सामने एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया है। इस स्कूल का निरीक्षण कर सरकार को इसे मॉडल के रूप में प्रदेश भर के शिक्षकों को दिखा कर कुछ इसी तरह के स्कूल बनाये जाने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए।जिससे सरकार का आर टी ई के माध्यम से निजी स्कूलों को फीस के रूप में दिए जाने वाले अरबो रुपये बचेंगे और शासन को अलग से अंग्रेजी स्कूल खोल कर इन्हें सफेद हाथी बनाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।