रायपुर। कोरोना काल में मूर्तिकारों के सामने अब रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है। हालत ये है कि मूर्तिकारों को जो पहले गणेश प्रतिमा के आर्डर मिल जाया करते थे, वह भी अब नहीं मिल रहे हैं। इतना ही नहीं मूर्तिकारों ने अब प्रतिमाओं की संख्या भी घटा दी है। साथ ही कोलकत्ता से बुलाने वाले कारीगरों को भी कम कर दिया गया है। कुल मिलाकर अब प्रतिमा बनाने वाले कलाकरों को अपनी लागत निकालने में भी खासा संघर्ष करना पड़ रहा है। इस बार पूरे देश में गणेश उत्सव 10 सितंबर से मनाया जाएगा। बिलासपुर के तपन प्रमाणिक लंबे समय से मूर्ति बनाने काम कर रहे हैं। तपन बताते हैं कि पिछले साल लॉकडाउन की वजह से मूर्तियों का काम बंद पड़ा था। किसी तरह से हमने अपनी जमा पूंजी का इस्तेमाल कर जरूरतों को पूरा करने का काम करते रहे। इस साल प्रशासन ने मूर्तियां बनाने की अनुमति दी है। लेकिन हमें खरीदार नहीं मिल रहे हैं। यही वजह है कि 2 साल पहले तक जहां हम 160 मूर्तियां बनाया करते थे। वो इस बार घटकर 80 रह गई हैं। आगे उन्होंने कहा इस काम के अलावा उन्हें और कुछ आता भी नहीं,इसलिए मूर्तियों की लागत ही निकल जाए वही बहुत है। ग्राहक नहीं मिलने की वजह से 25 हजार की मूर्ति अब हम 10 हजार रुपए में भी बेचने के लिए तैयार हैं। ताकि किसी तरह रोजी रोटी चलती रहे और बाहर से आए कारीगरों को उनका मेहनताना दिया जा सके।
कोलकाता से बुलाए जाते हैं कारीगर
मूर्तिकार तपन ने बताया कि हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने कोलकाता से कारीगर बुलवाएं हैं। पैसों की बचत हो इसलिए केवल 16 की जगह 8 कारीगरों को ही बुलाया गया है। तपन और उनका दल अभी 80 मूर्तियों पर काम कर रहा है। जिनमें से लगभग 50 भगवान गणेश की मूर्तियां, 35 देवी दुर्गा की और 15 विश्वकर्मा भगवान की मूर्तियों को तैयार किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि प्रशासन ने इस बार 4 से 6 फीट की मूर्तियों के निर्माण की अनुमति दी है। लेकिन ग्राहक अगर अपने रिस्क पर बड़ी मूर्तियां ले जाने की जिद करता है तो हम उन्हें वह भी बना कर दे देते हैं। उन्होंने कहा की बड़ी मूर्तियों में बड़ी कमाई होती है, यही वजह है कि हम ऐसे ग्राहकों को मना नहीं कर पाते। जिस वक्त हम मूर्तिकारों से बात कर रहे थे, उसी वक्त वहां मंदिर चौक निवासी हरीश बर्मन पहुंचे। हरीश अपने कॉलोनीवासियों के साथ पहले कॉलोनी में ही गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते थे। लेकिन इस बार चंदा देने के लिए कोई तैयार नहीं है। इस वजह से सभी लोग अपने अपने घरों में ही मूर्ति स्थापित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अपने घर के लिए वह मूर्ति लेने आए थे,लेकिन उन्हें उनके पसंद की मूर्ति नहीं मिली।
मूर्ति बनाते समय विशेष नियमों का करना पड़ता है पालन
मूर्तिकारों ने बताया कि भगवान की मूर्ति बनाते समय उन्हें कठोर नियमों का पालन करना होता है। बिना नहाए कोई भी मूर्तियों को हाथ नहीं लगाता है। किसी भी तरह का धूम्रपान करने की इजाजत उन्हें नहीं होती है। मूर्ति के लिए कोलकाता से विशेष तौर पर गंगा मिट्टी बुलाई जाती है। भगवान की मूर्तियों को तैयार करते समय गंगा मिट्टी का इस्तेमाल बेहद जरूरी होता है। इस मिट्टी पर आकृतियों को उकेरना बेहद आसान होता है। यही वजह है कि चेहरे का हाव भाव दिखाने के लिए इस मिट्टी का उपयोग मूर्तियों के चेहरों को तैयार करने में होता है। अंत में मूर्तिकार तपन ने बताया कि उनके दोनों बेटे दूसरे कारीगरों के साथ मूर्ति बनाने का काम करते हैं। उन्होंने कहा हमारी विरासत को आगे बढ़ाने का काम अब इन्हीं के कंधो पर रहेगा।