बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर में नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट कर डीआरजी जवानों से भरे वाहन को उड़ा दिया। इस हमले में 10 डीआरजी जवान शहीद हो गए, जबकि एक ड्राइवर भी मारा गया। ये डीआरजी जवान बारिश में फंसे दूसरे जवानों का रेसक्यू करने जा रहे थे। अरनपुर में हुई इस नक्सली वारदात के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर डीआरजी जवान नक्सलियों के निशाने पर क्यों थे? दरअसल नक्सलियों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों ने कांटे से कांटा निकालने का तरीका अपनाया था। इसके तहत पहले खुंखार नक्सलियों के आत्मसमर्पण का अभियान चलाया। इन्हीं आत्मसमर्पित नक्सलियों की भर्ती डिस्ट्रिक्ट रिर्जव गार्ड यानी डीआरजी में की गई। नक्सली हमलों के लिए प्रशिक्षित इन जवानों को उनसे निपटने के लिए उतारा गया। नक्सली गतिविधियों से परिचित जवान हमेशा मुठभेड़ में नक्सलियों पर भारी पड़े हैं। अब तक के लगभग सभी बड़े नक्सल विरोधी अभियान की सफलता इन्हीं के बूते मिली है।
बस्तर संभाग में नक्सलियों की मौजूदगी ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ की पहचान है। केंद्र और राज्य सरकार कई बार नक्सल उन्मुलन के लिए रणनीति बनाकर काम कर चुकी हैं। इसके बावजूद उन्हें जड़ से नहीं मिटाया जा सका। नक्सलियों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों ने भी फूंक-फूंककर कदम उठाया। मगर, नक्सली बड़ी वारदातों को अंजाम देकर उनकी रणनीति पर प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं।
डीआरजी बस्तर जवानों का मूल निवास स्थान छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में है। वे बस्तर की जंगलों में गुटों के रूप में रहते हैं और अपनी विशिष्ट संस्कृति और भाषा के लिए जाने जाते हैं। इन जवानों को सरकार ने डीआरजी नाम से जाना जाता है।
डीआरजी बस्तर जवानों का मुख्य काम छत्तीसगढ़ में एनकाउंटर और नक्सली गुरिल्ला समूहों के साथ सुरक्षा ऑपरेशन के दौरान काम करना होता है। इन जवानों को पूरी तरह सशक्त किया गया है और वे अपने काम के लिए उच्च दर्जे के विशिष्ट सुरक्षा समूहों में शामिल होते हैं।
इन जवानों को बस्तर के गांवों में भी बेहतर संबंध बनाने का जिम्मा दिया जाता है। वे जंगलों में रहने वाले लोगों की भाषा और संस्कृति से अच्छी तरह अवगत होते हैं जिससे वे उनसे बेहतर संबंध बना सकते हैं।
डीआरजी बस्तर जवान एक सशस्त्र सेना है जो भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर क्षेत्र में काम करती है। इन जवानों का मुख्य काम राज्य में माओवादी गतिविधियों के खिलाफ लड़ाई करना होता है।
डीआरजी बस्तर जवानों का इतिहास बहुत अधिक समय तक जाता है। इनकी स्थापना वर्ष 1982 में हुई थी। इन जवानों को एक सेना के रूप में संगठित किया गया था, जो राज्य में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए बनाई गई थी।
डीआरजी बस्तर जवानों के काम करने के तरीके बहुत समूहों में विभाजित होते हैं। इन समूहों में शामिल होने के लिए, उम्मीदवारों को एक लंबा और भरपूर ट्रेनिंग प्रदान की जाती है। इस ट्रेनिंग के दौरान, वे शूटिंग, राजनीतिक निष्पक्षता, आतंकवादी गतिविधियों को दबाने के लिए सेना चलाने और अन्य नैतिक मुद्दों के बारे में शिक्षित किए जाते हैं।