रायपुर। (पूनम ऋतु सेन), कल के लेख में हमने मल्हार में उत्खनन से प्राप्त हेरम्ब रूप के गणपति जी की प्रतिमा,स्वरूप व प्रेरणा के बारे में जाना, चलिये इसी कड़ी में आज मल्हार से ही मिली स्त्री वैनायकी स्वरूप के गणेश जी की प्रतिमा के बारे में जानते हैं-
स्त्री वैनायकी रूप
बिलासपुर से 40कि.मी. दूर मल्हार के ही पातालेश्वसर मंदिर के एक मूर्ति की पहचान गणेश जी के स्त्री वैनायकी रूप में की गयी है। धार्मिक मामलों से जुड़े जानकार बताते हैं कि गणेश जी ने यह स्त्री रूप अन्धक राक्षस से उत्पन्न हुये अन्धका के रक्त को पीने के लिये किया था। इसी रूप की समानता को देखते हुये इतिहासविदों ने इन्हें भगवान गणेश का ही एक रूप बताया है।
वैनायकी रूप की धार्मिक मान्यताएं
धर्मोत्तर व मत्स्य पुराण और दुर्गा उपनिषद में गणेश जी के वैनायकी रूप का उल्लेख मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ‘अन्धक’ नामक राक्षस को माता पार्वती से विवाह करने की जिज्ञासा हुई और वह माता को अर्धांगनी बनाने के लिए जबरदस्ती करने लगा तब भगवान शंकर ने अपनी पत्नि के रक्षा स्वरूप क्रोधवश अंधक के ऊपर त्रिशूल से वार किया जिससे अंधक का रक्त बूँद-बूँद बहकर गिरने लगा और यही बूंदे ‘अँधिका’ नामक राक्षसी में परिवर्तित होते गया।
माता पार्वती यह भली-भाँति जानती थी कि किसी भी दैवीय रूप के दो तत्व होते हैं,ये हैं पुरुष तत्व और शक्ति तत्व। इसके पश्चात माता पार्वती ने स्त्री शक्तियों का आह्वान किया तब सभी दैवीय शक्तियों ने अंधक के देह से गिरते रक्त का रसपान किया परंतु पूर्ण रूप से अंधक राक्षस का विनाश नही हो सका जिसे देखते हुए गणेश जी ने अपनी माता की रक्षा हेतु स्त्री रूप का धारण किया और तब तक रक्त पीते रहे जब तक अंधक के देह से रक्त बहना बंद नहीं हुआ, इस प्रकार भगवान गणेश जी ने अंधक राक्षस के सर्वविनाश में अहम भूमिका निभायी।
विनायक नाम भी उन्हें वैनायकी रूप के इसी प्रसंग से प्राप्त हुआ है।
स्त्री रूप के गणेश जी का महत्व
गणेश जी का स्त्री रूप भी माता पार्वती के समान ही दिखायी देता है किन्तु दोनों स्वरूप में मुख्य अंतर सिर का आकार है जो गणपति जी को गज आकार का होने के कारण उन्हें अलग बनाता है। स्त्री स्वरूप के गणेश जी दस हाथों में गदा, त्रिशूल,भुजंग, कमल, शंख, माला, चक्र धारण किये होते हैं।
उनका यह स्वरूप प्रकृति में पुरुष तत्व के सामान ही मान्य है जो पालन पोषण करने वाली माँ है और आपत्ति आने पर रक्षिका भी है। दक्षिण के राज्यों में उनके इस रूप को अम्मा भी कहा जाता है।
स्त्री रूप के गणराज आज के दौर में प्रासंगिक दिखाई देते हैं जो रूढ़िवादी पुरुष समाज के लिए समानता का संदेश दे रहे हैं।
कहाँ-कहाँ पूजे जाते है गणेश जी का स्त्री रूप?
भारत के ऐसे बहुत से स्थल है जहाँ छत्तीसगढ़ के मल्हार के समान ही प्राचीन गणेश के स्त्री रूप की प्रतिमाएं मिलीं हैं और उनके इसी रूप का मंदिर निर्माण कर आज भी पूजा जा रहा है। इनमें से कुछ प्रमुख स्थल हैं- मध्यप्रदेश के भेड़ाघाट का चौसठ योगिनी मंदिर,चौसठ योगिनी मंदिर, ओडिशा, केरल का चेरियनद मंदिर और थानुमलायन मंदिर, तमिलनाडु का चिदंबरम मंदिर, पुणे से 45km दूरी में स्थित भूलेश्वर मंदिर। इसके अतिरिक्त बिहार और ओड़ीसा राज्य के रानीपुर झरियाल में भी गणेश जी के स्त्री स्वरूप की पूजा की जा रही है।
ऐसे ही छत्तीसगढ़ में छिपे हुए अन्य रोचक तथ्यों के बारे में जानने के लिये हमसे जुड़े रहें।