मुंडा में नहीं है आंगनबाड़ी 9 किलोमीटर दूर लुल्ह जाना पड़ता है गर्भवती महिलाओ को
सूरजपुर। सूरजपुर जिले के ओडग़ी विकासखंड का एक गांव जो पहाड़ पर बसा है विकास के दौर में आज भी पिछड़ा है। मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है, गाँव का नाम है भुंडा… एक ऐसा गांव है जहां आज भी आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है और बच्चे, गर्भवती व शिशुमती माताएं शासन की योजनाओं से वंचित हैं। यहां से करीब नौ किमी दूर लूल्ह में केंद्र है जहां बच्चों व माताओं के नाम दर्ज तो किये जाते हैं लेकिन दूर व जंगली रास्ता होने के कारण वे यहां तक नहीं पहुंच पाते हैं। भुंडा बहुत पुराना गांव है और आज तक यहां आंगनबाड़ी केंद्र न होना आश्चर्य की बात है तथा यह प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाता है। भारत की संभावित सबसे बड़ी पंचायत खोहिर का आश्रित ग्राम भुंडा, मूलभूत सुविधाओं से वंचित तो है ही, योजना के आरंभ होने के कई दशक बाद भी आंगनबाड़ी केंद्र के न होने का खामियाजा भुगत रहा है। आंगनबाड़ी केंद्र शासन की महत्वपूर्ण योजना है जिसके माध्यम से कुपोषण दूर करने व अन्य महत्वपूर्ण कार्य किये जाते हैं। छोटे बच्चे, गर्भवती व शिशुवती माताओं को शासन की योजनाओं का लाभ मिल सके, मोहल्ले-मोहल्ले में केंद्र खोले जाते हैं। जनसंख्या व मांग के आधार पर शासन तुंरत केंद्र खोलने अनुमति देती है, भवन का निर्माण कराया जाता है और कार्यकर्ता, सहायिका की भर्ती की जाती है। अब भुंडा की बात करें तो शासन की प्राथमिकता से केंद्र खोलने की मंशा के बावजूद करीब 150 की जनसंख्या वाला यह गांव आज भी आंगनबाड़ी केंद्र खुलने का इंतजार कर रहा है। जानकारी देते हुए यहां के रामकरण, लालसाय, बृजलाल विनोद, बसंतलाल, संगीता, मानकुंवर व अन्य ने बताया कि उनके गांव में बिना भवन के प्राथमिक व मिडिल स्कूल तो है लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है, शासन प्रशासन द्वारा अब तक यहां आंगनबाड़ी केंद्र खोलने पहल भी नहीं की गई है। उन्होंने बताया कि यहां से करीब नौ किमी दूर लूल्ह में आंगनबाड़ी केंद्र है जहां यहां के बच्चों और गर्भवती तथा शिशुमती माताओं के नाम दर्ज किए जाने की जानकारी दी जाती है। लूल्ह यहां से काफी दूर है और जंगल व जंगली जानवरों के डर के कारण वहां जाना आसान नही ंहोता इसलिए कोई वहां नहीं जाता है और शासन की योजनाओं से वंचित हो जाता है। उन्होंने बताया कि कई तरह के पोषक खाद्य पदार्थ जैसे गर्म भोजन, रेडी टू ईट व अन्य सामग्री केंद्रों से मिलती है, लेकिन गांव में केंद्र न होने व लूल्ह न जाने पाने के कारण व इनसे वंचित हो जाते हैं। बरहाल पहाड़ पर बसे व अन्य गांवों से कई-कई किलोमीटर दूर होने के बावजूद आंगनबाड़ी केंद्र का न होना प्रशासनिक उदासीनता को प्रदर्शित करता है,क्योंकि प्रशासनिक स्तर पर जब भी गांव की बात होती होगी,वहां संचालित योजनाओं का जिक्र भी होता होगा, जिनमें आंगनबाड़ी केंद्र का न होना भी पता चलता होगा। ये बातें भी सामने आती होंगी कि केंद्र के अभाव में यहां के बच्चे व माताएं योजनाओं से वंचित हैं (अगर जानकारी सही दी जाती होगी तो), फिर यहां केंद्र खोलने प्रयास क्यों नहीं हुए।दूसरी तरफ ग्रामीणों ने शासन प्रशासन से भुंडा में आंगनबाड़ी केंद्र खोलने की मांग की है ताकि उन्हें शासन की योजनाओं से वंचित न होना पड़े।
आंगनबाड़ी और स्वास्थ्य व गांव के विकास में इसकी भूमिका
आंगनबाड़ी केंद्र एक तरह का प्ले स्कूल होता है, जहां गांव के छोटे बच्चे जाकर खेलते हैं और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता द्वारा उन्हें प्राथमिक शिक्षा भी दी जाती है। लेकिन, इसके अलावा आंगनवाड़ी केंद्रों की ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य, पोषण और जागरूकता बढ़ाने में अहम भूमिका होती है।आंगनवाड़ी केंद्र से गांव के विकास को बल मिलता है, इससे ग्रामवासियों को कई सुविधाएं मिलती हैं। गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य, टीकाकरण और रेगुलर चेकअप का ध्यान रखना, गांव के सभी छोटे बच्चों का टीकाकरण सुनिश्चित करना, बच्चों और महिलाओं को पौष्टिक आहार मुहैया करवाना ताकि वे कुपोषण के शिकार न हों, 3 से 6 साल के बच्चों को प्री-स्कूल एक्टिविटीज करवाना ताकि उनका बेहतर मानसिक विकास हो सके, स्वास्थ्य और पोषण को लेकर गांव में जागरूकता फैलाना, स्थानीय स्तर पर सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचाना, गांव से बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी डाटा इक_ा करना, कुपोषण अथवा बीमारी के गंभीर मामलों को अस्पताल भेजना व अन्य कार्य शामिल हैं।
बैजनपाठ के पण्डो पारा में भी यही हाल
पहाड़ पर बसे बैजनपाठ में पंडोपारा कई स्थिति भी भुंडा जैसी ही है और यहां के बच्चों व शिशुवती माताओं को करीब 2 किलोमीटर दूर पारा मोहल्ला जाना पड़ता है। गौरतलब है कि पूर्व कलेक्टर ने कोरोना काल में बैजनपाठ में चौपाल लगाकर लोगों की समस्याएं सुनी थी जहां वर्तमान सरपंच फूलसाय पण्डो ने यह समस्या लिखित में रखा था कि पिछले वर्ष बैजनपाठ में संचालित एकल आंगनबाड़ी में कुल 68 दर्ज संख्या है। पारा मोहल्ला कि दूरी खासकर पण्डो पारा के बच्चे जिनकी संख्या लगभग 45 है, वहां शिशुवती व गर्भवती लगभग 1-2 किलोमीटर दूर जाते हैं। मांग के बाद पूर्व कलेक्टर रणबीर शर्मा ने कहा था कि तत्काल नया आंगनबाड़ी केंद्र पण्डोपारा में खोला जाएगा लेकिन यह आज तक नहीं खुला जबकि यहां पण्डो विशेष पिछड़ी जनजाति, राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र निवास करते हैं।