सुहागिन महिलाओं के लिए साल का महत्वपूर्ण पर्व करवा चौथ व्रत है। इस दिन का वे पूरे साल इंतजार करती हैं। इस व्रत को पति की लंबी उम्र की कामना से रखा जाता है। चंद्रमा को अर्ध दे कर अखंड सौभाग्य की कामना की जाती है।
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि के दिन करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। निर्जला व्रत कर चंदमा निकलने के बाद पूजा कर व्रत खोला जाता है।
महिलाएं सिर से लेकर पांव तक सज संवर कर पूजा करती हैं।
चंद्रमा को सामन्यतः आयु, सुख और शांति का कारक माना जाता है। इसलिए करवा चौथ पर चंद्रमा की पूजा करके महिलाएं वैवाहिक जीवन मैं सुख शांति तथा पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। आइये जानें पूजा करने का तरीका।
कैसे सजाएं पूजा की थाली और क्या खास करें
चंद्रमा के दर्शन के लिए थाली सजाएं। थाली मैं दीपक, सिन्दूर, अक्षत, कुमकुम, रोली तथा चावल की बनी मिठाई या सफेद मिठाई रखें। संपूर्ण श्रृंगार करें और करवे में जल भर लें। मां गौरी और गणेश की पूजा करें। चंद्रमा के निकलने पर छलनी से या जल में चंद्रमा को देखें। अर्घ्य दें, करवा चौथ व्रत की कथा सुनें। उसके बाद अपने पति की लंबी आयु की कामना करें। सुहागन महिला को श्रृंगार का सामान दें तथा उनसे आशीर्वाद लें।
शुभ मुहूर्त
इस साल करवा चौथ व्रत पर पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 5:29 बजे से 6:48 बजे तक का रहेगा. इस दिन चंद्रोदय रात 8:16 बजे पर होगा। पांचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि का आरंभ 4 नवंबर को 03:24 पर होगा। चतुर्थी तिथि 5 नवंबर शाम 5:14 तक रहेगी।
करवा चौथ व्रत कथा
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही खा सकती है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। जो ऐसा प्रतीत होता है जैसे चतुर्थी का चांद हो। उसे देख कर करवा उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है।
उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर चौथ का दिन आता है, तो वह व्रत रखती है और शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ लेकिन हर कोई मना कर देती है। आखिर में एक सुहागिन उसकी बात मान लेती है। इस तरह से उसका व्रत पूरा होता है और उसके सुहाग को नये जीवन का आर्शिवाद मिलता है।