देश के न्यायालयीन इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई। सुप्रीम कोर्ट की पहल और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की देखरेख में प्रदेश के 18 जिलों में मध्यस्थता कानून का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया। इसके तहत सुलह-समझौते से प्रकरणों का बोझ कम किया जाएगा। पहले दिन प्रशिक्षित न्यायिक अधिकारी और अधिवक्ताओं को जिला न्यायालयों में उन मुकदमों की फाइल सौंपी गई, जिनमें राजीनामा की संभावना अधिक है। उन्होंने फाइलों का अध्ययन भी किया। चरणबद्ध प्रक्रिया के बाद मामला सुलह के लिए न्यायालयों तक पहुंचेगा।
मध्यस्थता कानून के लागू होने से न्यायालयों में लंबित प्रकरणों में कमी आने के साथ ही सुनवाई पर लगने वाले समय और खर्च की भी बचत होगी। इसके लिए प्रदेश के 40 चुनिंदा न्यायिक अधिकारी और अधिवक्ताओं को 40 घंटे का प्रशिक्षण दिया गया है।छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में वर्तमान में 89 हजार 132 मामले और जिला न्यायालयों में साढ़े चार लाख से अधिक मामले लंबित हैं। वहीं, देशभर के हाई कोर्ट में 59 लाख 63 हजार 848 मामले लंबित हैं। इनमें सिविल के 42 लाख 86 हजार 933 और क्रिमिनल के 16 लाख 76 हजार 915 मामले शामिल हैं।
निर्णय लेने का अधिकार दोनों पक्षों को होगा
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव ओमप्रकाश वारियर ने कहा कि न्याय की यह व्यवस्था सभी पक्षों के लिए लाभकारी होने के साथ-साथ सस्ती भी होगी। इसमें दोनों पक्षों को एक-दूसरे की बातें सुनने और भावनाओं को समझने का पर्याप्त अवसर प्राप्त होगा। इसमें निर्णय लेने का अधिकार भी दोनों पक्षों को रहेगा।
इस तरह चरणबद्ध चलेगी प्रक्रिया
राजीनामा योग्य प्रकरणों से जुड़ी फाइलों का अध्ययन करने के बाद अधिवक्ता दोनों पक्षों के पारिवारिक व उनकी अन्य गतिविधियों की जानकारी हासिल करेंगे। इसके बाद समन जारी कर तय तारीख पर दोनों पक्षों को बुलाया जाएगा। पहले अलग-अलग चर्चा कर उनकी मानसिकता टटोलेंगे। फिर दोनों पक्षों को एक साथ बैठाकर राजीनामा के लिए बात करेंगे। इस दौरान अधिवक्ता राजीनामा की स्थिति में होने वाले लाभ की जानकारी भी देंगे। जब दोनों पक्ष राजीनामा के लिए अपनी सहमति देंगे तब उनसे हलफनामा लिया जाएगा। शपथ-पत्र के साथ प्रकरण्ा की फाइल संबंधित न्यायालय में सुनवाई के लिए पेश की जाएगी। इसके बाद न्यायालय दोनों पक्षों को समन जारी कर तलब करेगा। कोर्ट में अधिवक्ता की मौजूदगी में दोनों पक्ष समझौते की बात स्वीकारेंगे। इसके बाद न्यायालय राजीनामा के आधार पर मामले को निराकृत करेगा।
परिवार न्यायालय के मामले अधिक
जिला न्यायालयों में लंबित प्रकरणों में सर्वाधिक मामले परिवार न्यायालय से हैं। इसमें पारिवारिक विवाद के अलावा विवाह विच्छेद से संबंधित प्रकरणों की मामले ज्यादा हैं। इसलिए पहले चरण में अधिवक्ताओं को परिवार न्यायालय से संबंधित फाइलें सौंपी जा रही हैं। इसके अलावा मोटर दुर्घटना, निषेधाज्ञा, मकान मालिक एवं किरायेदार के बीच विवाद, सिविल रिकवरी, व्यावसायिक झगड़े के अलावा उन प्रकरणों पर जोर दिया जा रहा है, जिनमें समझौते से विवाद के निराकरण की संभावना ज्यादा देखी जा रही है।