
21वीं सदी के भारत में अगर किसी मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस की जगह चारपाई पर लेटाकर उसे ले जाने की मजबूरी हो तो इसे सरकार की उदासीनता ही कहा जाएगा। दरअसल, पखांजुर के अंदरूनी गांव की स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी खाट पर टिकी हुई है।
देश आज 5जी सेवा का उपयोग कर रहा है। इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया नही हो पा रही है। ग्राम पंचायत स्वरूपनगर का आश्रित गांव पोरियाहुर के एक ग्रामीण रात 3 बजे अचानक उल्टी दस्त होने लगी। तबीयत इतनी खराब हो गई कि सुबह तक इंतजार करना संभव नही था। उसे पैदल या मोटरसाइकिल पर बैठाकर अस्पताल भी नहीं ले जाया जा सकता था। उनकी जान बचाने के लिए ग्रामीण चारपाई पर लेटाया और पैदल चल पड़े। हालांकि इससे पहले संजीवनी वाहन सुविधा के 108 को कॉल किया।
गांव से 6 किलोमीटर दूर पैदल चलने के बाद जब ग्रामीण पुलविहीन बारकोट नदी पार कर पहुंचे इसके बाद भी संजीवनी वाहन का लाभ नही मिला। मरीज की स्थिति देख ग्रामीणों ने फिर पैदल चलने की तैयारी की और तीन किलोमीटर पैदल चलकर संगम पहुंचे। कुल 9 किलोमीटर पैदल दूरी तय करने के बाद चारपाई से मरीज को मुक्ति मिली और संजीवनी वाहन से पखांजुर सिविल अस्पताल लाया गया। जहां मरीज को भर्ती कराकर उपचार किया जा रहा है।
आधुनिक युग में भी ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का न मिल पाना सरकार के लिए नाकामी से कम नही है। अंदरूनी इलाके के ग्रामीणों ने साफ अहसास करा दिया है कि वे सरकार के भरोसे नही टिके हैं। बारकोट नदी पुलविहीन होने के चलते संजीवनी वाहन का गांव तक पहुंचना संभव नही था। नदी के तट तक एम्बुलेंस पहुंच सकती थी। इससे ग्रामीणों को शीघ्र और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया हो पाती।