यहां पक्षी इन कारणों से करते हैं ‘सामूहिक आत्महत्या’, जानिए कारण

असम के दीमा हसाओ जिले के हरे-भरे परिदृश्य में जटिंगा नामक एक सुंदर और मनमोहक गांव स्थित है. राजसी बोरेल पर्वतों से घिरा यह गांव सिर्फ़ 25,000 लोगों का घर है. दूर से देखने पर गांव का शांत और शांत वातावरण सबका मन मोह लेता है लेकिन गहराई से देखने पर आपको पता चलेगा कि इस शांति के पीछे एक ऐसा रहस्य छिपा है जो अंधकारमय है और बिल्कुल भी मनमोहक नहीं है. जटिंगा एक जेमी नागा शब्द है जिसका अर्थ है ‘बारिश और पानी का मार्ग’ लेकिन यह गांव एक बहुत ही अजीबोगरीब घटना के लिए प्रसिद्ध है जिसे 1900 के दशक की शुरुआत से देखा गया है.

 

दरअसल इस गांव में सामूहिक पक्षी आत्महत्या एक बहुत बड़ा रहस्य बना हुआ है. इस वजह से एक शताब्दी से अधिक समय से वैज्ञानिकों, पक्षीविज्ञानियों और स्थानीय लोग इस मसले को उजागर करने की आस में अभी तक उलझे हुए हैं.

 

पक्षियों की सामूहिक आत्महत्या

सितंबर से नवंबर के महीनों के दौरान, जब गांव घने कोहरे और धुंध में लिपटा होता है, तो स्थानीय और प्रवासी पक्षी सबसे असामान्य तरीके से व्यवहार करना शुरू कर देते हैं. टाइगर बिटरन से लेकर किंगफिशर जैसी प्रजातियों के ये पक्षी अंधेरे आसमान में अनियमित रूप से उड़ना शुरू कर देते हैं. इससे भी अधिक अजीब बात यह है कि उनमें से कुछ बेवजह पेड़ों, मकान और अन्य वस्तुओं से टकराते हैं, जैसे कि किसी अदृश्य शक्ति द्वारा उन्हें टकराने के लिए मजबूर किया जा रहा हो.

 

ज्यादातर चांदनी रातों में होती है यह घटना

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यह घटना खास तौर पर गांव की पहाड़ी की 1.5 किलोमीटर की संकरी पट्टी पर होती है और इस वजह से गांव को पक्षियों के लिए बरमूडा त्रिभुज का खिताब मिला है. यह घटना ज्यादातर चांदनी रातों में होती है जब प्राकृतिक रोशनी नहीं होती. ये पक्षी खास तौर पर कृत्रिम रोशनी की ओर आकर्षित होते हैं.

 

पक्षियों का सामूहिक आत्महत्या बना रहस्य

इस घटना को सबसे पहले 1900 के दशक में नागा लोगों ने देखा था. हालांकि, जनजाति को यकीन हो गया था कि यहां कुछ बुरा हो रहा है और उन्होंने तुरंत गांव छोड़ दिया.1905 में, जैंतिया जनजाति ने इस परित्यक्त गांव को पाया और इसे अपना घर बना लिया. वे भी इस विचित्र घटना के गवाह बने लेकिन नागा जनजाति के विपरीत उन्होंने इसे अभिशाप के रूप में नहीं देखा. जैंतिया के लिए, इन पक्षियों की मौत का मतलब था कि वे उनका मांस खा सकते थे और कठिन इलाके में खुद को जीवित रख सकते थे. जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, कई लोग जवाब की तलाश में यहां आए लेकिन कोई भी पक्षियों द्वारा सामूहिक आत्महत्या करने के पीछे के रहस्य का निर्णायक जवाब नहीं दे पाया है.

 

क्या है पूरा मामला?

इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है. वैज्ञानिकों के मुताबिक गहरी घाटी में बसे होने के कारण जातिंगा में तेज बारिश के दौरान जब पक्षी यहां से उडऩे की कोशिश करते हैं तो वह पूरी तरह से गीले हो जाते हैं और उनको उड़ने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. वहीं दूसरी ओर तेज हवाओं से पक्षियों का संतुलन बिगड़ जाता है और पेड़ों से टकराकर वो घायल हो जाते हैं, और फिर जमीन पर ही दम तोड़ देते हैं.

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