रायपुर। हाईकोर्ट ने भूपेश सरकार द्वारा झीरम मसले पर गठित नए न्यायिक जांच आयोग को कार्यवाही से रोक दिया है। चीफ जस्टिस अरूप गोस्वामी और जस्टिस सामंत की डबल बैंच ने उक्ताशय का फैसला देते हुए राज्य सरकार और आयोग को नोटिस जारी किया है। याचिका पर अगली सुनवाई चार जुलाई को होनी है। यह याचिका नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की ओर से लगाई गई है। इस याचिका में झीरम मामले की जांच के लिए गठित न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग के साथ-साथ नए आयोग के गठन को चुनौती दी गई है। उच्च न्यायालय में यह याचिका सबसे पहले तेरह अप्रैल को पेश हुई थी, इस याचिका की ग्राह्यता पर सुनवाई 29 अप्रैल को होनी थी, लेकिन उस दिन याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पेश नही हुए थे, जिसके बाद आज इस याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर नए न्यायिक जांच आयोग को कार्यवाही करने पर रोक लगा दी गई है।
क्या है मामला
इस याचिका में बीते 25 मई 2013 को झीरम में नक्सली हमले में मारे गए 29 कांग्रेस नेताओं की हत्या के बाद गठित न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक किए जाने की मांग की गई है। यह जांच आयोग 28 मई 2013 को गठित किया गया था,इस एकल सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रशांत मिश्रा थे।कऱीब दस साल तक की जांच के बाद जस्टिस प्रशांत मिश्रा ने न्यायिक जांच आयोग की 4184 पन्नों की रिपोर्ट छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के तत्कालीन रजिस्ट्रार संतोष तिवारी के ज़रिए 6 नवंबर 2021 को राज्यपाल अनुसईया उइके को सौंपी। न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट सीधे राज्यपाल को सौंपे जाने से सियासी गलियारों में चर्चा शुरु हो गई। भाजपा की ओर से खुलकर यह कहा गया कि न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट में इस सरकार में प्रभावी व्यक्ति या कि व्यक्तियों के खिलाफ टिप्पणी अथवा निष्कर्ष है। ये रिपोर्ट राज्यपाल ने राज्य सरकार को भेज दी और राज्य सरकार ने इस जाँच रिपोर्ट को अपूर्ण बताते हुए तीन नए बिंदुओं के साथ नया जांच आयोग बना दिया।11 नवंबर 2021 को दो सदस्यीय नया जांच आयोग बना जिसमें छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस सतीश अग्निहोत्री को अध्यक्ष और जस्टिस जी मिन्हाजुद्दीन को सदस्य बनाया गया।
क्या है झीरम कांड
झीरम हमला तब हुआ था जबकि 2013 जो कि चुनावी साल था उस समय कांग्रेस पूरे प्रदेश में परिवर्तन यात्रा निकाल रही थी। यह परिवर्तन यात्रा सुकमा से रवाना होकर अगले गंतव्य के लिए निकली थी, तभी माओवादियों ने झीरम घाटी पर हमला कर दिया था, इस हमले को आज़ाद भारत का सबसे बड़ा राजनैतिक हत्याकांड माना गया। इस हमले में कांग्रेस की एक पूरी पीढ़ी ही समाप्त हो गई थी। इसमें तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार समेत 29 लोग मारे गए थे।तब राज्य में डॉ. रमन सिंह की सरकार थी जबकि केंद्र में डॉ. मनमोहन सिंह वाली यूपीए सरकार थी। कांग्रेस ने इस हत्याकांड में राजनैतिक षड्यंत्र और राज्य सरकार द्वारा जानबूझकर बरती गई लापरवाही को दोषी ठहराया था।
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के वकीलों ने कहा
इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता धरमलाल कौशिक के अधिवक्ताओं महेश जेठमलानी विवेक शर्मा ने तर्क दिया कि इस मसले पर गठित दूसरी न्यायिक जांच आयोग के पहले जो न्यायिक जांच आयोग रिपोर्ट पेश हो चुकी है उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक होनी चाहिए,प्रक्रिया के अनुसार राज्य सरकार को इसे विधानसभा के पटल पर रख फिर यह बताना चाहिए कि, इस जांच रिपोर्ट में कौन से बिंदु पर विश्लेषण नहीं है,और फिर नया न्यायिक जांच आयोग बनाना चाहिए,लेकिन इस प्रक्रिया का पालन ना करते हुए सीधे नया आयोग गठित कर दिया गया और जस्टिस प्रशांत मिश्रा की रिपोर्ट सार्वजनिक ही नहीं की गई। नया न्यायिक जांच आयोग राजनैतिक विद्वेष से गठित किया गया है, जबकि एक मसले पर एक बार न्यायिक जांच हो चुकी है तो फिर उसी समले पर दूसरा न्यायिक जांच आयोग गठित नहीं किया जा सकता,यह तब ही हो सकता है जबकि पहली न्यायिक जांच रिपोर्ट सार्वजनिक कर सरकार यह स्पष्ट करे कि, किन बिंदुओं पर जांच नहीं की गई है।