एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) को एचआइवी (ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस) की प्रतिकृति को सीमित करने और संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए जाना जाता है। लेकिन, मानव शरीर से यह वायरस कभी भी पूरी तरह खत्म नहीं होता। यह कुछ कोशिकाओं में बरकरार रहते हुए मानव ऊतकों में गहराई तक चला जाता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को चकमा देने में कामयाब रहता है। कनाडा स्थित यूनिवर्सिटी आफ अल्बर्टा के शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि संक्रमित लोग एचआइवी से पूरी तरह छुटकारा क्यों नहीं पा सकते हैं। टीम ने पाया कि एचआइवी रोगियों की टी सेल में सीडी-73 नामक प्रोटीन की मात्रा बहुत कम होती है। टी सेल एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं हैैं, जो संक्रमित कोशिकाओं को पहचानने और उन्हें नष्ट करने के लिए जिम्मेदार होती हैैं। यूनिवर्सिटी के इम्युनोलाजिस्ट शोक्रोला इलाही ने ‘पीएलओएस पैथोजन्स” नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन निष्कर्ष में बताया, ‘चूंकि, सीडी-73 ऊतक में स्थानांतरण व कोशिकाओं की गतिविधियों के लिए जिम्मेदार है, प्रोटीन की कमी के कारण टी सेल एचआइवी संक्रमित कोशिकाओं को खोजने व उन्हें खत्म करने में कमजोर पड़ जाती हैं।” उन्होंने कहा, ‘यह तंत्र बताता है कि एचआइवी मानव ऊतकों में हमेशा के लिए क्यों बरकरार रहता है। हमारा श्ाोध एचआइवी संक्रमण की जटिलताओं पर भी प्रकाश डालता है।”