कही-सुनी ( 18 Oct): मंच के पीछे की कहानियाँ- राजनीति,प्रशासन और राजनीतिक दलों की

हास्य रस में बुनी हुई एक हल्की -फुल्की अन्दाज में- जो राजनीति, अफसर साहब के आसपास की गलियों से होते हुए पाठकों तक पहुचीं।

रवि भोई (प्रबंध संपादक समवेत सृजन एवं स्वतंत्र पत्रकार



चक्रव्यूह में फंसे अमित जोगी

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि उसे भेदने की बात तो दूर अमित जोगी को उसकी भनक तक नहीं लगी। अमित जोगी और उनकी पत्नी ऋचा जोगी दोनों का जाति प्रमाण पत्र रद्द हो गया। इस आधार पर दोनों का नामांकन भी निरस्त हो गया। साफ़ लगने लगा है कि इस बार तो मरवाही उपचुनाव जोगी परिवार का कोई सदस्य नहीं लड़ पायेगा। जोगी परिवार उच्च स्तरीय छानबीन समिति और कलेक्टर के निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट जाता है तो उम्मीद नहीं है कि उन्हें सोमवार को ही न्याय मिल जाय। फिर चुनाव प्रक्रिया के बीच कोर्ट पीटीशन सुनता है या नहीं, यह अलग मुद्दा है। उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने अमित जोगी के खिलाफ गलत जाति प्रमाण पत्र बनाने के आरोप में एफआईआर दर्ज करने के आदेश दे दिए हैं, यह एक अलग उलझन है। अब जोगी परिवार के गर्त में जाने के बाद मरवाही उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला होना तय है। वैसे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और कितने निर्दलीय मैदान में रहते हैं, यह नाम वापसी के बाद साफ़ होगा। एक सवाल और लोगों के जेहन में उठ रहा है कि क्या अब जोगी परिवार कांग्रेस और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से दो-दो हाथ करने के लिए भाजपा का साथ दे सकता है ? लग रहा है कि इस संभावना को देखकर भूपेश बघेल ने अमित जोगी पर एफआईआर का तलवार लटका दिया है। 2001 से जोगी परिवार के कब्जे में रही मरवाही सीट पर स्व. अजीत जोगी को चाहने वाले तो कुछ होंगे। जोगी परिवार उन्हें किस तरफ मोड़ता है, यह देखने वाली बात होगी। चुनाव मैदान से जोगी परिवार की बेदखली के बाद लोग कांग्रेस की जीत की संभावना भी व्यक्त करने लगे हैं। कहने लगे हैं इस जीत के साथ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मजबूत होकर उभरेंगे।


क्या अमित जोगी अब अमेरिका जायेंगे ?

मरवाही उपचुनाव लड़ने से अपात्र घोषित होने के बाद लोग चर्चा करने लगे हैं कि क्या अमित जोगी अब अमेरिका की तरफ रुख करेंगे। कहते हैं 7 अगस्त 1977 को अमेरिका के टेक्सास में जन्मे, अमित ने 2004 में भारतीय नागरिकता ले ली थी और अमेरिकी नागरिकता त्याग दी थी। बताया जाता है अमेरिका में पैदा हुए नागरिक दोबारा वहां की नागरिकता ले सकते हैं। मरवाही चुनाव न लड़ पाने से उनके राजनीतिक कैरियर पर ब्रेक तो लग गया है। कहा जा रहा है कि भूपेश बघेल की सरकार रहते तक तो मुश्किलें कम होती नहीं दिखती और उनकी अपनी ही पार्टी में स्वीकार्यता को लेकर भी बहस होती रहती है, ऐसे में लोग कहने लगे हैं कि यहाँ के झंझटों से मुक्ति के लिए कहीं वे अमेरिका न चले जायं। अब देखते हैं आगे क्या होता है।

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राजभवन और सरकार में टकराव की वजह

भूपेश सरकार ने सोनमणि बोरा की जगह अमृत खलखो को राज्यपाल का सचिव बना दिया। इससे सरकार और राजभवन में टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। राज्यपाल ने अमृत खलखो को कार्यभार संभालने की अनुमति अब तक नहीं दी है। इसका साफ़ संकेत है कि सरकार के दो मंत्री के राजभवन पहुंचने पर भी मामला ठंडा पड़ता और राज्यपाल की नाराजगी दूर होती दिखाई नहीं दे रही है। कहते हैं राज्यपाल अनुसुइया उइके की पसंद पर ही सोनमणि को सरकार ने राजभवन में पदस्थ किया था। सोनमणि अगले महीने तक केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले जायेंगे, लेकिन उसके पहले ही राज्यपाल की सहमति के बगैर उन्हें हटाकर खलखो को भेज दिया गया। आमतौर पर परंपरा है कि राज्यपाल की सहमति व राय पर किसी अफसर को राजभवन भेजा जाता है। राज्यपाल का सचिव राजभवन और सरकार के बीच की कड़ी होता है। सरकार चाहती है कि राजभवन उसका पलड़ा भारी हो और कोई फाइल न रुके। डायरेक्ट आईएएस की जगह प्रमोटी आईएएस किसी भी सरकार के लिए अनुकूल होते हैं। इस कारण सरकार ने प्रमोटी आईएएस खलखो को सचिव बना दिया,लेकिन राजभवन के रुख से लगता नहीं राज्यपाल उन्हें स्वीकार करेंगी।खलखो अब तक किसी विभाग के सचिव नहीं रहे हैं। सरकार और राज्यपाल के बीच कई मुद्दों पर तनातनी लंबे समय से चल रही है। कहते हैं सोनमणि से श्रम विभाग का चार्ज छिनने से राज्यपाल खुश नहीं थी। अब उनसे सलाह-मशविरा किए बिना ही सचिव बदलने को राजभवन पर सीधे निशाने के तौर पर देख रही हैं।


प्रशासन में साउथ के अफसरों का दबदबा

कहते हैं छत्तीसगढ़ के प्रशासन में एक बार फिर दक्षिण भारतीय निवासी आईएएस अफसरों का दबदबा हो गया है।राज्य गठन के शुरूआती दिनों में ओडिशा के रहने वाले आईएएस अफसरों की लाबी मजबूत हुआ करती थी। उड़िया अफसरों में सुब्रत साहू और निरंजन दास भूपेश सरकार में दमदार पोजीशन में हैं। पर तब सुयोग्य कुमार मिश्रा, मन्मथ कुमार राउत, बीकेएस रे, डीएस मिश्रा सत्ता के काफी करीब थे। इसके बाद साउथ के आईएएस अफसर ताकतवर हो गए। पी. जाय ओमेन, सुनील कुमार और एन. बैजेंद्रकुमार का जमाना आया। बीच में छत्तीसगढ़िया अफसरों की तूती बोली। विवेक ढांड , अजय सिंह और कुछ अफसर सत्ता के केंद्र में रहे। चर्चा है कि एक बार फिर आईएएस की साउथ लॉबी सत्ता की कोटरी में हैं। मसलन रेणु पिल्ले हेल्थ की अपर मुख्य सचिव और एम.गीता कृषि उत्पादन आयुक्त हैं तो अलरमेल मंगई डी., अंबलगन पी. सीआर प्रसन्ना और दूसरे अफसर महत्वपूर्ण पदों पर तैनात हैं। वैसे कहा जाने लगा है कि भूपेश सरकार पंजाबी लॉबी पर भी भरोसा करने लगी है।

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किसानों से जुड़ा एक विभाग आईटी के राडार में

छत्तीसगढ़ में खेती-किसानी से जुड़ा एक विभाग आयकर विभाग के राडार में आ गया है। कहते हैं कि जाँच-पड़ताल में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को इस विभाग द्वारा राज्य के एक अफसर और उनकी पत्नी को बड़ी राशि के भुगतान का क्लू मिल गया है। आयकर विभाग ने इस विभाग के मुखिया को नोटिस जारी कर छह अक्टूबर को जवाब के साथ उपस्थित होने के लिए कहा था, लेकिन विभाग को नोटिस पांच अक्टूबर को ही मिला। बताया जा रहा है कि विभाग ने नोटिस देरी से मिलने की वजह से उपस्थित न हो पाने का हवाला देकर जवाब भेज दिया है। अब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के अगले कदम का इंतजार है।


फंड का फेर

कहते हैं छत्तीसगढ़ भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल का फंड दूसरे मद में व्यय के लिए ट्रांसफर न करना एक अफसर को भारी पड़ गया। चर्चा है कि सरकार इस संस्था के फंड का इस्तेमाल नगरीय निकाय की कुछ योजनाओं में करना चाहती थी। श्रमिकों के कल्याण के लिए जुटाई गई राशि को ऐसा कर पाना संभव नहीं हुआ तो सरकार ने अफसर ही बदल दिया। चर्चा है कि नया अफसर भी श्रमिक कल्याण फंड के इस्तेमाल को बदल न सका। कुछ महीने पहले भी सरकार ने मंडी की जमीन को ज्वेलरी पार्क के लिए ट्रांसफर न करने के मसले पर दो अफसरों को बदल दिया और नए अफसर ने सरकार की मंशा पूरी कर दी , पर कोर्ट में पंगा फंस गया।


आईएफएस हर जगह “फिट”

कहते हैं भारतीय वन सेवा के एक अफसर कुछ महीने पहले तक कला-साहित्य के मर्मज्ञ थे। अब खेती-किसानी के विशेषज्ञ हो गए हैं। वैसे भारतीय वन सेवा के अफसरों को वानिकी का विशेषज्ञ माना जाता है। कहते हैं खासतौर से वनों के प्रबंधन के लिए भारतीय वन सेवा संवर्ग में अफसरों का चयन होता है। छत्तीसगढ़ में वन क्षेत्र करीब 44 फीसदी होने के नाते राज्य गठन के वक्त बंटवारे में आईएएस और आईपीएस के मुकाबले आईएफएस ज्यादा मिले थे। पिछली सरकार ने वन के साथ आईएफएस को प्रशासन और दूसरे कामों में भी लगा दिया। नई सरकार में भी परंपरा चल पड़ी है। कैडर पोस्ट में आईएफएस के कब्जे के खिलाफ आईएएस लॉबी ने गांधीगिरी की कोशिश की थी , लेकिन नक्कार खाने की तूती बनकर रह गई।राज्य में चर्चा चल पड़ी है आईएफएस है, यानी सबमें “फिट” है।

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आईएएस के लिए 2003-2004 के डीसी में संघर्ष

चर्चा है कि आईएएस बनने के लिए 2003 और 2004 के डिप्टी कलेक्टरों में संघर्ष चल रहा है। राज्य लोकसेवा आयोग के स्केलिंग के चक्कर में 2003 बैच के डिप्टी कलेक्टरों का मामला अब तक कोर्ट में गोते खा रहा है। लेकिन इस बीच 2003 बैच के डिप्टी कलेक्टर कन्फर्म और और प्रमोट भी हो गए, पर 2003 वालों का मामला पेंडिग होने का हवाला देकर 2004 बैच के डिप्टी कलेक्टर आईएएस की दौड़ में शामिल हो गए और बाजी जीतने के फेर में लग गए हैं। कहते हैं नौकरी को अलविदा कहने वाली 2004 बैच की एक डिप्टी कलेक्टर ने आईएएस बनने की ललक में सेवा में वापसी के लिए कोर्ट में दस्तक दी है। अब देखते हैं 2003 और 2004 के डिप्टी कलेक्टरों में आईएएस बनने की रेस में कौन जीतता है ?

(डिस्क्लेमर – हमने लेखक के मूल लेख में कोई भी बदलाव नही किया है। प्रकाशित पोस्ट लेखक के मूल स्वरूप में है।)

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