कल मनाई जाएगी कार्तिक पूर्णिमा

नहीं होगा ग्रहण का असर

 

कल कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाएगी. इस बार कार्तिक पूर्णिमा और ग्रहण को लेकर भी कई तरह की भ्रांति सुनने को मिल रही है. इस दिन पड़ने वाला चन्द्रग्रहण उपछाया चन्द्रग्रहण है जिसके कारण इसका असर यहां नहीं होगा. इस दिनदीप दान का भी विशेष महत्व है. देवताओं की दिवाली होने के कारण इस दिन देवताओं को दीप दान किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि दीप दान करने पर जीवन में आने वाले परेशानियां दूर होती है.

पंडित मनोज शुक्ला के अनुसार इस दिन न तो सूतक माना जाएगा और न ही ग्रहण का कोई असर होगा। लोग अपनी सहूलियत के अनुसार इस दिन पूजा-पाठ, स्नान दान कर सकते हैं इसमें किसी प्रकार की मनाही नहीं होगी। इस दिन घर को सजाकर पूजा करनी चाहिए। पूर्णिमा होने के कारण इस दिन चन्द्रमा की पूजा कर भोग लगाना चाहिए।
घरों में दीपक जला कर मुख्य दर में बंदनवार लागना चाहिए. रंगोली से मुख्य द्वार को सजना चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा की जाती है. साथ ही पार्वती मां और लक्ष्मी जी को प्रसन्न करना श्रेष्ण माना गया है.

कार्तिक पूर्णिमा 2020 तिथि
इस वर्ष, कार्तिक पूर्णिमा 30 नवंबर को मनाई जाएगी. पूर्णिमा तिथि 29 नवंबर की दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से शुरू होकर 30 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी.

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरारी का अवतार लिया था और इस दिन को त्रिपुरासुर के नाम के एक असुर को मार दिया था. यही कारण है कि इस पूर्णिमा का एक नाम त्रिपुरी पूर्णिमा भी है. इस प्रकार भगवान शिव ने इस दिन अत्याचार को समाप्त किया था. इसलिए, देवताओं ने राक्षसों पर भगवान शिव की विजय के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस दिन दीपावली मनाई थी. भक्त गंगा के घाटों पर तेल के दीपक जलाकर और अपने घरों को सजाकर देव दीपावली मनाते हैं.

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देव दीपावली की पहली कथा
देव दीपावली की कथा महर्षि विश्वामित्र से जुड़ी है. मान्यता है कि एक बार विश्वामित्र जी ने देवताओं की सत्ता को चुनौती दे दी. उन्होंने अपने तप के बल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया. यह देखकर देवता अचंभित रह गए. विश्वामित्र ने ऐसा करके उनको एक प्रकार से चुनौती दे दी थी. इस पर देवता त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर भेजने लगे, जिसे विश्वामित्र ने अपना अपमान समझा. उनको यह हार स्वीकार नहीं थी.

तब उन्होंने अपने तपोबल से उसे हवा में ही रोक दिया और नई स्वर्ग तथा सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी. इससे देवता भयभीत हो गए. उन्होंने अपनी गलती की क्षमायाचना तथा विश्वामित्र को मनाने के लिए उनकी स्तुति प्रारंभ कर दी. अंतत: देवता सफल हुए और विश्वामित्र उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गए. उन्होंने दूसरे स्वर्ग और सृष्टि की रचना बंद कर दी. इससे सभी देवता प्रसन्न हुए और उस दिन उन्होंने दिवाली मनाई, जिसे देव दीपावली कहा गया है।

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