पलायन के लिए चर्चित हो चुके महासमुंद जिले में इन दिनों मजदूरों का पलायन बदस्तूर जारी है। विडम्बना है कि श्रम विभाग व पुलिस विभाग को सब जानकारी होते हुए भी कुभकंर्णी नींद में सोये हुए है। आजकल महासमुंद रेलवे स्टेशन जहां पर मजदूर एक पेड़ के नीचे रात में बैठे हैं और सोच रहे है कि कैसे अपने मंजिल तक पहुंचे। पुरुष, महिला और बच्चे मिलाकर इनकी संख्या 15 है और ये बागबाहरा विकासखण्ड के तेन्दूबहरा के रहने वाले है। इनको खट्टी नर्रा का मजदूर दलाल तीर्थ पटेल रायपुर भेजा था, फिर रायपुर से इन्हे उत्तर प्रदेश ले जाया जाता लेकिन महासमुंद पुलिस ने इन्हे रेलवे स्टेशन पर उतारा और इनसे पूछताछ कर भोजन कराया फिर रेलवे स्टेशन लाकर छोड़ दिया और इनसे कहा कि आप के सरदार से बात हो गयी है।
नियमानुसार अंतर्राज्यीय प्रवासी कर्मकार अधिनियम 1979 के अंतर्गत मजदूर ठेकेदारों को मजदूरों की संख्या सहित पंजीयन कराना होता है और ले जाने से पहले श्रम विभाग को सूची देनी पड़ती है, लेकिन श्रम विभाग के अधिकारियों के कुभकंर्णी नींद के कारण मजदूर ठेकेदार बिना लाइसेंस व सूचना दिये ही हजारों की संख्या में मजदूरों को ले जा रहे है। शासकीय रिकार्ड के अनुसार 14 मजदूर ठेकेदारों ने अपना पंजीयन मात्र 2400 मजदूर ले जाने के लिए करा रखे है। मजदूर जिस ठेकेदार का नाम ले रहा है उसके नाम से कोई पंजीयन नहीं है। इस पूरे मामले में जब मीडिया ने श्रम विभाग के आला अधिकारी से सवाल किया तो महोदय सारा ठीकरा कलेक्टर पर फोडते हुए कि जब तक कलेक्टर आदेश नहीं करेंगे मैं कुछ नहीं कर सकता हूं।
गौरतलब है कि महासमुंद जिले में हर साल दिपावली के आसपास सैंकड़ों की संख्या में मजदूर पलायन करते हैं। मगर, शासकीय रिकार्ड नील बताता है। वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान सरकारी रिकार्ड के मुताबिक 65 से 70 हजार मजदूर पलायन कर वापस आये थे। अभी हाल ही में ग्राम नरतोरा के एक दंपति को दूसरे प्रदेश में बंधक बना लिया गया था और वे लोग प्रशासन से गुहार लगा रहे थे ।