अमेरिका स्थित बच्चों के राष्ट्रीय अस्पताल में हुए एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि गर्भावस्था के दौरान तनाव, चिंता व अवसाद ज्यादा होने से भ्रूण के मस्तिष्क में बदलाव आता है। इसके कारण जन्म के 18 महीने होने पर शिशु के संज्ञानात्मक विकास में बाधा आती है। यह शोध निष्कर्ष जेएएमए नेटवर्क नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने 97 गर्भवती महिलाओं व उनके बच्चों के एक समूह को अध्ययन में शामिल किया था। इस दौरान पाया गया कि भ्रूण के मष्तिष्क में बदलावों ने किसी भी विचार अथवा अवधारणा को स्वीकार करने में कमी लाने के साथ-साथ उपापचय, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया के नियमन को भी नुकसान पहुंचाया। अध्ययन निष्कर्ष में बताया गया है कि जन्म के बाद बच्चे का मनोवैज्ञानिक संकट लगातार बढ़ता जाता है। इसके कारण माता-पिता के साथ उसकी बातचीत व स्वनियमन की प्रक्रिया में भी बाधा पैदा हो सकती है। बच्चों के राष्ट्रीय अस्पताल स्थित डेवलपिंग ब्रेन इंस्टीट्यूट की निदेशक व अध्ययन की वरिष्ठ लेखिका कैथरीन लिम्परोपोलोस के अनुसार, ‘गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या से पीड़ित महिलाओं को चिन्हित करते हुए डाक्टर उन शिशुओं की पहचान सकते हैं, जिन्हें बाद में तंत्रिका के विकास से संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में प्रभावित बच्चों को समय पर चिकित्सकीय लाभ दिया जा सकता है।”