जेठ अमावस्या के मौके पर शहर में सुहागिनों ने वट सावित्री का पर्व श्रद्धापूर्वक मनाया। इस बार पर्व के आयोजन का तरीका भी कुछ बदला नजर आया। कोरोना संक्रमण के चलते कई महिलाओं ने घरों और मंदिरों में ही वट वृक्ष की डंगाल की पूजा अर्चना की तो कई महिलाएं आसपास के घरों के पास स्थित वट वृक्ष की पूजा-अर्चना कर पति के सौभाग्य और सुहाग की कामना की। शहर में सुबह से ही वट सावित्री पर्व मनाने के लिए सुहागिनें अपने घरों से साज श्रृंगार कर वटवृक्ष के नीचे पूजा अर्चना करने पहुंची। बाबूपारा स्थित शिव मंदिर के वट वृक्ष, गांधी चौक, कलेक्टोरेट सहित कुछ अन्य स्थानों पर वट वृक्षों की पूजा अर्चना करने महिलाओं की काफी भीड़ जुटी। कई महिलाएं आचार्य और पंडितों की मौजूदगी में वट सावित्री की कथा भी सुनी।
इस दौरान महिलाओं ने वट वृक्ष में परिक्रमा कर कच्चे सूत को बांधा और पति के सौभाग्य की कामना की। इधर कोरोना संकट को देखते हुए कई महिलाओं ने घरों और आसपास के मंदिरों में ही वट के डंगाल की पूजा अर्चना की। इसके लिए उन्होंने वट की डंगाल को किसी पात्र में स्थापित किया और विधि विधान से उसकी पूजा-अर्चना कर पति की सुख-समृद्धि की कामना की।
बरगद का पेड़ चिरायु होता है। अतः इसे दीर्घायु का प्रतीक मानकर परिवार के लिए इसकी पूजा की जाती है। हालांकि लॉकडाउन की वजह से महिलाएं इस बार पारंपरिक तरीके से बरगद के पेड़ के नीचे पूजा नहीं कर पाएंगी। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन ही माता सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्घा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे। अतः इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है। महिलाएं भी इसी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए व्रत रखकर पूरे विधि विधान से पूजा करती हैं। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।