धर्मशास्त्रीय विधान अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी में अखंड सौभाग्य के लिए करवाचौथ का व्रत किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्रियां दांपत्य जीवन में पति सौख्य व अखंड सौभाग्य के लिए यह व्रत करती हैं। रात्रि कालीन चंद्रमा का दर्शन कर अर्घ्य-पूजन का विधान है। इस बार करवाचौथ व्रत 13 अक्टूबर को पड़ रहा है।
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार इस बार करवाचौथ पर कृतिका नक्षत्र व सिद्धि योग का दुर्लभ संयोग होने से यह बेहद खास भी होगा। इस व्रत में शिव-शिवा, स्वामी कार्तिकेय और चंद्रमा का पूजन कर चंद्रोदय होने पर उन्हें अर्घ्य देकर कथा सुननी चाहिए। नैवेद्य (प्रसाद) काली मिट्टी के कच्चे करवे में चीनी की चाशनी बनाएं व घी में पका खाड़ मिश्रित आटे का लड्डू अर्पण करें। पति के माता-पिता को नैवेद्य में 13 करवे, लड्डू और लोटा, वस्त्र, विशेष करवा देना चाहिए।
सौभाग्यवती स्त्रियों को प्रात:काल नित्य क्रिया व स्नानादि से निवृत्त होकर हाथ में जल-अक्षत-पुष्प-द्रव्य लेकर सुख-सौभाग्य, पुत्र-पौत्र, स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए तिथि-वार-नक्षत्र का उच्चारण करते हुए करवाचौथ व्रत का संकल्प लेना चाहिए। शिव-गौरी और भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या चित्र स्थापित करना चाहिए। माता पार्वती का षोडशोपचार पूजन व शिव-कार्तिकेय की पूजा-आराधना कर चंद्रमा को अर्घ्य और कथा सुननी चाहिए।