बांग्लादेश की राजधानी ढाका के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा मंच और उस पर रखीं दो कुर्सियां व मेज आज भी 51 साल पहले की गौरवशाली घटना की याद ताजा कर रही हैं। ये वही कुर्सियां हैं जिनमें एक पर बैठकर पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर दस्तखत किए थे, जबकि दूसरी कुर्सी पर भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिह अरोड़ा बैठे थे। संग्रहालय में रखी इसी मेज पर आत्मसमर्पण का दस्तावेज रखकर उस पर हस्ताक्षर किए गए थे।
ढाका के रेसकोर्स ग्राउंड पर हुए इस आयोजन के लिए तुरत-फुरत इंतजाम किए गए थे। यह दुनिया का पहला आत्मसमर्पण था, जिसे सार्वजनिक रूप से अंजाम देने के लिए समारोह जैसा इंतजाम किया गया था। यह इंतजाम करने वाले रिटायर्ड ब्रिगेडियर संत सिंह को ढूंढ़कर बांग्लादेश संबाद संस्ठा (बीएसएस) ने 2012 में उनसे साक्षात्कार किया था। अपनी वीरतापूर्ण शानदार सेवाओं के लिए दो बार महावीर चक्र पाने वाले भारतीय सेना के इकलौते अधिकारी ब्रिगेडियर सिंह ने बताया- उन्होंने पूर्वी कमान के तत्कालीन कमांडिग आफीसर मेजर जनरल जेएफआर जैकब के निर्देश पर नियाजी के ढाका स्थित कार्यालय से ही कुर्सी-मेज का इंतजाम किया था। चूंकि वहां भीड़ एकत्रित हो गई थी, इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से लोगों को दूर रखना जरूरी था। इसीलिए आनन-फानन में छोटा सा मंच तैयार किया गया और उस पर कुर्सी-मेज रखी गईं। मंच से लोगों को दूर रखने के लिए सैनिक तैनात किए गए।
गौर हो कि बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई 1971 में लड़ी गई थी। पाकिस्तान से इस इलाके को मुक्त कराने में भारतीय सेना ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। उसी के बाद पाकिस्तानी सेना के लगभग एक लाख जवानों ने 16 दिसंबर को समर्पण किया था।