हमारे समाज में शुरू से अपने स्तनों को ढक-छिपाकर रखना सिखाया जाता है। गांवों या छोटे शहरों में तो कोशिश यह होती है कि उभार तक न दिखने पाए, इसलिए दुपट्टे से ढककर रखो। यही नहीं, हमें ब्रा तक कपड़ों के नीचे छिपाकर सुखाने की ताक़ीद की जाती है। यह सोशल टैबू न हो और ब्रा न पहनना सामान्य बात हो जाए तो बहुत-सी लड़कियां इसे रोज़ नहीं पहनना चाहेंगी।
एक समय था, जब हमारी दादी-परदादी के जमाने में औरतें अलग से ऐसा कोई अंग-वस्त्र नहीं पहनती थीं। फिर, वक्त के साथ ब्रा का चलन शुरू हुआ। तब भी, चूंकि कामकाजी महिलाओं की तादाद काफी कम थी, तो उन्हें कभी-कभार, बाहर जाने या समारोह आदि में ही इसे पहनना पड़ता था। अब कामकाजी महिलाओं की संख्या काफी बढ़ चुकी है, जिन्हें रोज़ाना कई-कई घंटे मजबूरी में इसे पहनना पड़ता है। माना जाता है कि ब्रा पहनने से स्तन चुस्त और सुडौल रहते हैं, वरना वे लटक जाते हैं या ढीले पड़ जाते हैं। हालांकि, इस बात का कोई तथ्यात्मक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। शोध और अध्ययन यही तस्दीक करते हैं कि स्तनों की सेहत में ब्रा का खास योगदान नहीं है। अलबत्ता अच्छी क्वॉलिटी और सही साइज की ब्रा न पहनी जाए, तो स्तन, गर्दन, पीठ में दर्द, खुजली, स्तन में गांठ, यहां तक कि ब्रेस्ट कैंसर तक खतरा हो सकता है।
निम्न मध्यमवर्गीय और निम्न वर्ग की ज़्यादातर महिलाएं इन बीमारियों की ज़द में रहती हैं, क्योंकि अच्छी क्वॉलिटी के महंगे ब्रा अफोर्ड करना उनके बस की बात नहीं होती। वे तो ब्रा पहनने के सामाजिक दायित्व की पूर्ति के लिए गुमटी वाली दुकान और कई बार तो सड़क के किनारे लगी रेहड़ी से भी ये अंडरगार्मेंट खरीद लेती हैं।
कोरोना महामारी के दौर में रानी, उषा और राजकुमारी जैसी नौकरीपेशा लड़कियां घरेलु कामकाज के कारण ब्रा से आज़ादी मिल गई है। हालांकि इसके लिए विदेशों में कुछ महिलाएं तो बाक़ायदा #NoBra और #FreeTheNipples की मुहिम चला रही हैं। मगर एक कंपनी में काम कार्यरत मनसा जब घर लौटती हैं तक उसके हाथ तुरंज उन ब्रा हुक्स की ओर लपकते हैं, जिसने कई घंटे से उसके शरीर को क़ैद कर रखा था। इस जकड़न से ख़ुद को आज़ाद करने के बाद ही उसे राहत मिलती है।
जेनिफर लोपेज, रिहाना, केंडल जेनर, बेला हदीद, सेलेना गोमेज, किम कार्दाशियां जैसी स्टाइल आइकन और हॉलिवुड स्टार्स तक का मानना है कि औरत का स्तन शरीर के बाकी हिस्सों की तरह महज़ एक अंग है। इसी तर्क के आधार पर ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूकता और जेंडर इक्वॉलिटी के लिए हर साल 13 अक्टूबर को नो ब्रा डे भी मनाया जा रहा है। हालांकि, जब-जब महिलाओं ने ब्रा-लेस होने की पैरवी की है या बिना ब्रा के लोगों के बीच जाने की हिम्मत दिखाई है तो इन्हें आलोचना और ट्रोलिंग का सामना भी करना पड़ा है। कोई इसे इनकी बेशर्मी क़रार देता है, तो फ़र्ज़ी फेमिनिजम। #NoBra अभियान शुरू करने वाली कोरियन पॉप स्टार सुली को इस कदर ट्रोल किया गया कि तनाव और निराशा में उन्होंने अपनी ज़िंदगी ही ख़त्म कर ली।
महिलाओं की ब्रा-लेस होने की मांग की वजह कोई नहीं है। किसी के लिए यह चॉइस की बात है तो किसी के लिए विशुद्ध कंफर्ट यानी आराम का मामला, क्योंकि घंटों कसे हुए ब्रा की कैद का कष्ट वही समझ सकता है, जिसने उसे भुगता हो। यही वजह रही कि कोरोना महामारी ने जब महिलाओं को घर से काम करने की छूट दी, तो उन्होंने ख़ुद को ब्रा की इस कैद से भी आज़ाद कर लिया। अब बहुत-सी महिलाएं बिना ब्रा के ही घर में काम कर रही हैं। यहां तक कि कई बार तो वे बिना ब्रा पहने ही आसपास से सामान लेने भी चली जाती हैं।
एक कंपनी में कार्यरत स्नेहा ने कहा कि मैंने एक महीने से ब्रा नहीं पहनी। लॉकडाउन के चार महीनों में मैंने मुश्किल से छह-सात बार ब्रा पहनी होगी। यहां तक कि ब्रा न पहननी पड़े, इसलिए पहले तो मैं बाहर जाना ही अवॉयड करती थी, पर अब दुपट्टा या स्टोल लेकर चली जाती हूं। बिना ब्रा के ज़िंदगी सच में बहुत आरामदायक है।’ उसने कहा कि अब टीनएज से ब्रा पहन रही हूं, क्योंकि हमारी सोशल कंडीशनिंग ही ऐसी है कि बिना ब्रा के किसी के सामने जाने में असहज महसूस होता है।
फ्रांस के प्रफेसर जीन डेनिस रुइलॉन ने 15 साल के अध्ययन के बाद यह पाया कि ब्रा महिलाओं के स्तन को कोई फायदा नहीं पहुंचाते। उनके मुताबिक़, ‘18 से 35 की उम्र की 300 को महिलाओं पर किए अध्ययन में पता चला कि वे महिलाएं जिन्होंने ब्रा नहीं पहनी, उनके मसल्स टिशूज की ग्रोथ अधिक हुई, जिन्होंने प्राकृतिक रूप से स्तनों को सपोर्ट दिया और उन्हें ढीला होने से बचाया।’
स्वास्थ्य विशेषज्ञ ब्रा न पहनने के कई और फायदे भी बताते हैं। मसलन, ब्रा न पहनने से खून का संचार बढ़ता है, वरना टाइट फिटिंग की वायर्ड ब्रा पहनने से ब्रेस्ट के टिश्यू जकड़े रहते हैं, जिससे खून का प्रवाह सही तरीके से नहीं हो पाता। ब्रा-लेस होने पर त्वचा का रंग भी समान रहता है, स्ट्रैप के चलते चकत्ता पड़ने का खतरा भी नहीं रहता। गर्मियों में पसीने से बैक्टिरिया या फंगल इंफेक्शन का डर भी नहीं रहता।